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________________ ४१२ [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा २८०-२८१ संसारी जीवनि का परिमाण में स्यों पुरुष वेदी पर स्त्री वेदी जीवनि का परिमाण घटाएं जो अवशेष प्रमाण रहै; तितने नपुसकवेदी जीव जानने । गब्भण पुइत्थिसण्णी, सम्मुच्छरणसण्णिपुण्णगा इदरा । कुरुजा असण्णिगब्भजणपुइत्थीवाणजोइसिया ॥२८०॥ थोवा तिसु संखगुणा, तत्तो आवलिअसंखभागगुणा । पल्लासंखेज्जगुणा, तत्तो सम्वत्थ संखगुणा ॥२८१॥ गर्भनपुंस्त्रीसंज्ञिनः, सम्मूर्छनसंक्षिपूर्णका इतरे । कुरुजा असंज्ञिगर्भजनपुस्त्रीवानज्योतिष्काः ॥२८०॥ स्तोकाः त्रिषु संख्यगुणाः, तत आवल्यसंख्यभागगुणाः । पल्यासंख्येयगुणाः, ततः सर्वत्र संख्यगुणाः ॥२८॥ टीका - सैनी पंचेद्री गर्भज नपुंसक वेदी, बहुरि सैनी पंचेंद्री गर्भज पुरुष वेदी, बहुरि सैनी पंचेद्री गर्भज स्त्री वेदी, बहुरि सम्मूर्छन सैनी पंचेद्रिय पर्याप्त नपुंसक वेदी, बहुरि सम्मूर्छन सैनी पचेद्री अपर्याप्त नपुंसक वेदी, बहुरि भोगभूमिया गर्भज सैनी पंचेंद्री पर्याप्त पुरुष वेदी वा स्त्री वेदी, बहुरि असैनी पंचेद्री गर्भज नपुंसक वेदी, बहुरि असनी पचेद्री गर्भज पुरुष वेदी, बहुरि असैनी पंचेद्री गर्भज स्त्री वेदी, बहुरि व्यतरदेव, अर ज्योतिषदेव-ए ग्यारा जीवराशि अनुक्रम तै ऊपरि-ऊपरि लिखनी। पूर्वं जो ग्यारा राशि कहे, तिनि विषै नीचली राशि सैनी पंचेद्री गर्भज नपुंसक वेदी सो सर्व ते स्तोक है । आठ बार संख्यात अर आवली का असंख्यातवां भाग अर पल्य का असंख्यातवा भाग अर पेसठि हजार पांच सै- छत्तीस प्रतरागुल, इनिका भाग जगत्प्रतर को दीएं, जो परिमाण आवै, तितने जानने । बहुरि याके ऊपरि सैनी पचेंद्री गर्भज पुरुष वेदी स्यों लगाइ, तीन राशि अनुक्रम तै संख्यात गुणा जानना। बहुरि चौथी राशि तै पंचम राशि संमूर्छन सैनी पंचेद्री अपर्याप्त नपुंसक वेदी पावली का असंख्यातवा भाग गुणा जानना।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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