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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पीठिका ] [ રૂe अर लेश्या मार्गणा विषै प्रथमादि नरक पृथ्वीनि विषै लेश्या सभवने का, जिस-जिस संहनन के धारी जे-जे जीव जहां-जहा पर्यंत नरकविषै उपजै ताका, नरकनिविषै पर्याप्त-निर्वृत्यपर्याप्त अवस्था अपेक्षा बंधस्थाननि अर का, तिर्यच विषे एकेद्रियादिक कै वा भोगभूमियां तिर्यच कँ जो-जो लेश्या पाइए ताका, अर जे-जे जीव जिस-जिस लेश्याकरि तिर्यच विषै उपजै ताका, अर तिनकै निर्वृत्यपर्याप्त अवस्था विषै बंधस्थाननि का, अर जहां तै आए सासादन वा असंयत होइ अर तिनके जे बंधस्थान होइ ताका, अर शुभाशुभलेश्यानि विषे परिणामनि का, तहा प्रसंग पाइ कषायनि के स्थान वा तहा सक्लेश - विशुद्धस्थान वा कषायनि के च्यारि शक्तिस्थान, चौदह लेश्या स्थान, बीस आयु बन्धाबन्धस्थान तिनका, अर लेश्यानि के छब्बीस अंश, तहा आठ मध्यम श आयुबन्ध को कारण, ते आठ अपकर्षकालनि विषै होइ, अन्य अठारह अश च्यारि गतिनि विषै गमन को कारण तिनके विशेष का, अर लेश्यानि के पलटने के क्रम का वर्णन करि तिर्यच के मिथ्यादृष्टि आदि विषै जैसे मिथ्यात्व - कषायनि का उदय पाइए है ताकौ कहि, तहां जे बंधस्थान पाइए ताका, अर भोगभूमिया तिर्यच के वा प्रसंग पाई औरनि के जैसे निर्वृत्यपर्याप्त वा पर्याप्त मिथ्यादृष्टि आदि विषै जैसे लेश्याकरि बंधस्थान पाइए, वा भोगभूमि विषे जैसे उपजना होइ ताका वर्णन है । बहुरि मनुष्यगति विषे लब्धि अपर्याप्त, निर्वृत्यपर्याप्त, पर्याप्त दशा विषै जो-जो लेश्या पाइए वा तहां संभवते गुणस्थाननि विषै बधस्थान पाइए ताका वर्णन है । बहुरि देवगति विषै भवनत्रिकादिक के निर्वृत्यपर्याप्त वा पर्याप्त दशा विषै जो-जो लेश्या पाइए, वा देवनि के जहा जन्मस्थान है वा जे जीव जिस-जिस लेश्याकरि जहा जहां देवगति विषै उपजै, वा निर्वृत्यपर्याप्त वा पर्याप्त-दशा विषै मिथ्यादृष्टि आदि जीवनी के जे-जे बंधस्थान पाइए तिनका, अर तहा प्रासंगिक गाथानिकरि जे-जे जीव जहां-जहा पर्यंत देवगति विषै उपजै, वा अनुदिशादिक विमाननि ते चयकरि जे पद न पावे, वा जे जीव देवगति ते चयकरि मनुष्य होइ निर्वाण ही जाय, वा जहा के आये तिरेसठ शलाका पुरुष न होइ, वा देवपर्याय पाइ जैसे जिनपूजादिक कार्य करें तिनका वर्णन है । बहुरि भव्यमार्गणा विषे बंधस्थाननि का वर्णन है । बहुरि सम्यक्त्व मार्गणा विषै सम्यक्त्व के लक्षरण का, भेदनि का, जहां मरण न होय ताका, अर प्रथमोपशम सम्यक्त्व जाके होइ ताका, वा वाके जिन प्रकृतिनि
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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