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________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका ] [ ३६६ बहुरि जो पूर्व पर्याप्त त्रस जीवनि का प्रमाण कहा था, तामै त्रियोगी जीवनि का परिमाण घटाएं, जो अवशेष परिमाण रहै; तितने द्वियोगी जीव जानने । इनिकै वचन, काय दोय ही योग पाइए है। बहुरि संसारी जीवनि का जो परिमाण, तामै द्वियोगी पर त्रियोगी जीवनि का परिमाण घटाएं जो अवशेष परिमारण रहै, तितने जीव एक योगी जानने । इनि के एक काययोग ही पाइए है; असे प्रगट जानना । अंतोमहत्तमत्ता, चउमरणजोगा कमेण संखगुणा । तज्जोगो सामण्णं, चउवचिजोगा तदो दु संखगुणा ॥२६२॥ अंतर्मुहूर्तमात्राः, चतुर्मनोयोगाः क्रमेण संख्यगुणाः । तद्योगः सामान्यं, चतुर्वचोयोगाः ततस्तु संख्यगुणाः ॥२६२॥ टीका - च्यारि प्रकार मनोयोग प्रत्येक अंतर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति लीएं है । तथापि अनुक्रम ते संख्यात गुणे जानने । सोई कहिए है - सत्य मनोयोग का काल सबत थोरा है; सो भी अंतर्मुहर्त प्रमाण है; ताकी संदृष्टि-एक अंतर्मुहर्त । बहुरि यातें संख्यातगुणा काल असत्य मनोयोग का है, ताकी संदृष्टि-च्यारि अंतर्मुहूर्त । इहां संख्यात की सहनानी च्यारि जाननी। बहुरि यातै सख्यात गुणा उभय मनोयोग का काल है; ताकी सदृष्टि - सोलह अतर्मुहूर्त । बहुरि यातै संख्यातगुणा अनुभय मनोयोग का काल है; ताकी संदृष्टि-चौसठि अतर्मुहूर्त । असे च्यारि मनोयोग का काल का जोड दीएं जो परिमाण हवा, सो सामान्य मनोयोग का काल है, तिहि की संदृष्टि - पिच्यासी अतर्मुहूर्त । बहुरि सामान्य मनोयोग का काल ते संख्यातगुणा च्यारि वचनयोग काल है । तथापि क्रम ते संख्यातगुणा है, तो भी प्रत्येक अतर्मुहूर्त मात्र ही है। तहां सामान्य मनोयोग का कालतै संख्यातगुणा सत्य वचनयोग का काल है; ताकी संदृष्टि-चौगुणा पिच्यासी ( ४४८५) अतर्मुहूर्त । बहुरि यात संख्यात गुणा असत्य वचनयोग का काल है - ताकी सदृष्टि सोलहगुणा पिच्यासी ( १६४८५ ) अंतर्मुहूर्त । बहुरि यातै सख्यातगुणा उभय वचनयोग का काल है - ताकी संदृष्टि-चौसठिगुणा पिच्यासी ( ६४४८५ ) अतर्मुहूर्त । वहुरि यातै संख्यात गुणा अनुभय वचनयोग का काल है; ताकी दृष्टि-दोय से छप्पन गुणा पिच्यासी ( २५६४८५ ) अंतर्मुहूर्त ।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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