SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 295
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १६१-१९२ ३३० ] है । बहुरि जिस वनस्पती का कंदादिक की छालि पतली होइ, सो अप्रतिष्ठित प्रत्येक है। आगे श्री नेमिचंद्र सिद्धातचक्रवर्ती साधारण वनस्पती का स्वरूप सात गाथानि करि कहै है साहारणोदयेण णिगोदसरीरा हवंति सामण्णा । ते पुण दुविहा जीवा, बादर सुहमा त्ति विण्णेया ॥१६१॥ साधारणोदयेन निगोदशरीरा भवंति सामान्याः । ते पुर्नाद्वविधा जीवा, बादर-सूक्ष्मा इति विज्ञेयाः ।।१९१।। टीका - साधारण नामा नामकर्म की प्रकृति के उदय ते निगोद शरीर के धारक साधारण जीव हो है । नि - कहिये नियतज अनंते जीव, तिनिको गो कहिये एक ही क्षेत्र को, द कहिये देइ, सो निगोद शरीर जानना। सो जिनके पाइए ते निगोदशरीरी है। बहुरि तेई सामान्य कहिये साधारण जीव है। वहुरि ते वादर अर सूक्ष्म असे भेद ते दोय प्रकार पूर्वोक्त वादर सूक्ष्मपना लक्षण के धारक जानने । साहारणमाहारो, साहारणमारणपारगगहरणं च । साहारणजीवाणं, साहारणलक्खणं भणियं ॥१६२॥ साधारणमाहारः, साधारणमानपानग्रहरणं च । साधारणजीवानां, साधारणलक्षणं भरिणतम् ॥१९२।। टीका - साधारण नामा नामकर्म के उदय के वशवर्ती, जे साधारण जीव, तिनिके उपजते पहला समय विष पाहार पर्याप्ति हो है, सो साधारण कहिए अनंत जीवनि के युगपत एक काल हो है । सो आहार पर्याप्ति का कार्य यहु जो आहार वर्गणारूप जे पुद्गल स्कध, तिनिको खल-रस भागरूप परिणमावै है । बहुरि तिनही पाहार वर्गणारूप पुद्गल स्कंवनि कौं शरीर के आकार परिणमावनेरूप है कार्य जाका, असा शरीर पर्याप्ति, सो भी तिनि जीवनि के साधारण हो है। बहुरि तिनही की स्वर्गन इद्रिय के आकार परिणमावना है कार्य पाका, असा इन्द्रिय पर्याप्ति, सो भी साधारण हो है । वहुरि सासोस्वास ग्रहणरूप है कार्य जाका, असा प्रानपान १ पट्पटागम - घवला पुग्नक १, पृष्ठ २७२, गाथा १४५
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy