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________________ ३१.] । गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १७१ एकेद्रियादि पचद्रिय जीवनि के स्पर्शनादि इन्द्रियनि के उत्कृष्ट विषय ज्ञान का यत्र इद्रियनि के नाम | एकेंद्रिय | द्वीद्रिय | त्रीद्रिय चतुरिंद्रिय असज्ञी पचेंद्रिय सज्ञी पचेंद्रिय धनुप, धनुष, धनुप धनुष । योजन धनुप योजन योजन स्पर्गन स्पर्गन ४०० ८०० १६०० ३२०० ००। • ६४०० • ६४०० रमन | २५६ - प्राण | २०० चक्ष २६५४ | ५६०८/४७२६३।२० योजन ना.७ प्रमाण योग योग • • • ८००० . • १२ प्रागै इन्द्रियनि का आकार कहै है चक्ख सोदं घारणं, जिन्भायारं मसूरजवणाली। अतिमुत्तखुरम्पसम, फासं तु अरणेयसंठारणं ॥१७१॥ चक्षुःश्रोत्रवाणजिह्वाकारं मसूरयवनाल्यः । अतिमुक्तक्षुरप्रसमं, स्पर्णनं तु अनेकसंस्थानम् ॥१७१।। टोका - चक्षु इद्री तो मसूर की दालि का आकार है। बहुरि श्रोत्र इन्द्री सीडी नानी, नीहिके आकार है । बहुरि ब्राण इन्द्रिय अतिमुक्तक जो कदव का पत, नाक प्राकार है। वहरि जिह्वा इन्द्रिय खुरपा के आकार है। बहुरि स्पर्शन दस प्रकाशन है. जात पृथ्वी आदि वा वेद्री आदि जीवनि का शरीर का पार प्रने प्रकार है। तानं स्वर्शन इन्द्रिय का भी आकार अनेक प्रकार कह्या, Tiन्दिर नवं गरीर विर्ष व्याप्त है।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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