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________________ ३१६ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १७१ एकेद्रियादि पचद्रिय जीवनि के स्पर्शनादि इन्द्रियनि के उत्कृष्ट विपय ज्ञान का यत्र - इद्रियनि के नाम | एकेंद्रिय | द्वीद्रिय | श्रीद्रिय चतुरिंद्रिय प्रसज्ञी पचेद्रिय सजी पचेंद्रिय धनुप धनुप | धनुप | धनुष | योजन धनुप | योजन योजन स्पर्शन १६०० ३२०० ६४०० घ्राण चक्षु .७ प्रमाण |४७२६३१२० योजन ५६०८ थोत्र ८००० प्रागै इन्द्रियनि का आकार कहै है चक्खू सोदं धारणं, जिन्भायारं मसूरजवणाती। अतिमुत्तखुरप्पसम, फासं तु अणेयसंठाणं ॥१७१॥ चक्षुःश्रोत्रघ्राणजिह्वाकारं मसूरयवनाल्यः । अतिमुक्तक्षुरप्रसम, स्पर्शनं तु अनेकसंस्थानम् ॥१७१॥ टोका - चक्षु इंद्री ती मसूर की दालि का आकार है। वहरि श्रोत्र इन्द्री जब की जो नाली, तीहिके आकार है । बहुरि घ्राण इन्द्रिय अतिमुक्तक जो कदब का फल, ताके आकार है। वहुरि जिह्वा इन्द्रिय खुरपा के आकार है। वहरि स्पर्शन इन्द्रिय अनेक आकार है जातै पृथ्वी प्रा. . नेद्री आदि जीवनि का शरीर का प्राकार अनेक प्रर त स्पर्शन भी प्राकार अनेक प्रकार कद्या, जाते स्पर्शन * व्य
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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