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________________ २९२ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा १४५ जघन्य क्षुद्रभव, उत्कृप्ट असख्यात पुद्गल परिवर्तन काल है । दोऊ व्यपदेशरहितनि विषै सामान्यवत् काल है | बहुरि प्रहार मार्गणा विषै आहारक विषै मिथ्यादृष्टि का जघन्य अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात कल्पकाल प्रमाण जो अगुल का असंख्यातवां भाग, तीहि प्रमाण काल है । अवशेषनि का सामान्यवत् काल है । अनाहारक विषे मिथ्यादृष्टि जघन्य एक समय, उत्कृष्ट तीन समय । सासादन, असयत का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट दीय समय; सयोगी का जघन्य वा उत्कृष्ट तीन समय, प्रयोगी का सामान्यवत् काल है हा मार्गणास्थाननि विषै काल कह्या, तहां असा जानना विवक्षित मागंगा के भेद का काल विषं विवक्षित, गुरणस्थान का सद्भाव जेते काल पाइए, ताका वर्णन है | मार्गणा के भेद का वा तिस विपै गुणस्थान का पलटना भए, तिस काल का प्रभाव हो है । अंतर निरूपण करिए है - सो दोय प्रकार, नाना जीव अपेक्षा र एक जीव अपेक्षा । तहा विवक्षित गुणस्थाननि विषै वा गुणस्थान अपेक्षा लीए मार्गणास्थान विपं कोई ही जीव जेते काल न पाइए, सो नाना जीव अपेक्षा अंतर जानना । बहुरि विवक्षित स्थान विपैजो जीव वतँ था, सोई जीव अन्य स्थान को प्राप्त होई करिवहुरि तिन ही स्थान को प्राप्त होई, तहां बीचि विपे जेता काल का प्रमाण, सो एक जीव अपेक्षा अतर जानना | तहान नाना जीव अपेक्षा कहिए है, सो सामान्य विशेष करि दोय प्रकार । नन्- नामान्य करि मिथ्यादृष्टि, ग्रसयत, देशसयत, प्रमत्त, श्रप्रमत्त, सयोगीनि का नाही है । मानादन का वा मिश्र का जघन्य एक समय, उत्कृप्ट पल्य का असख्यान भाग मात्र अंतर है । च्यारि उपशमकनि का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट पृथक्त्व न्यारि क्षपकनि का वा प्रयोगी का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट छह v "" - तर 71 1 विशेष करि गति मागंणा विपे नारकी, तिर्यच, मनुष्य, देवनि विषे दृष्टवादि च्यारि पाँच, चांदह, च्यारि गुणस्थाननि विषे सामान्यवत्
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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