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________________ ०६२ ] | गोम्मटसार जीयकाण्ड गापा ११७ अव इनके अर्धच्छेद अर वर्गणलाकनि का प्रमाण कहिए है - तहां प्रथम श्रद्धा पल्य के अर्वच्छेद द्विरूप वर्गधारा विर्षे श्रद्धा पल्य के स्थान ते पहिले असख्यात वर्ग म्थान नीचे उतरि जो राशि भया, तीहि प्रमाण हैं । वहुरि श्रद्धा पल्य की वर्गशलाका तिमही द्विरूप वर्गधारा विप तिस पल्य ही के अर्धच्छेद स्थान ते पहले असंख्यात वर्गस्थान नीचे उतरि उपजी है । बहुरि सागरोपम के अर्धच्छेद सर्वधारा विपै पाइए है, ते पल्य के अर्धच्छेदनि विषै गुणकार जो दश कोडाकोडि, ताके संख्यात अर्धच्छेद जोडे जो प्रमाण होइ, तितने है । वहुरि ताकी वर्गशलाका इहां पल्य राशि ते गुणकार सख्यात ही का है, तातै न बने है । बहुरि सूच्यगुल है सो द्विरूप वर्गधारा विष प्राप्त है, सो यहु राशि विरलन देय का अनुक्रम करि उपज्या है, तात याके अर्धच्छेद अर वर्गणलाका सर्वधारा आदि यथासंभव धारानि विष प्राप्त है, द्विरूप वर्गधारा आदि तीन धारानि विष प्राप्त नाही है। तहां विरलन राशि पल्य के अर्धच्छेद, इनिकी देय राशि पल्य, ताके अर्धच्छेदनि करि गुणै, जो प्रमाण होइ, तितने तो सूच्यंगुल के अर्धच्छेद है। बहुरि द्विरूप वर्गधारा विष पल्यरूप स्थान ते ऊपरि मूच्यगुल का विरलन राशि जो पल्य के अर्धच्छेद, ताके जेते अर्धच्छेद है तितने वर्गस्थान जाड सूच्यंगुल स्थान उपजै है । तातै पल्य की वर्गशलाका का प्रमाण ते सूच्यंगुल की वर्गशलाका का प्रमाण दूणा है । तातै पल्य पर्यन्त एक बार पल्य की वर्गगलाका प्रमाण स्थान भए पीछे पल्य के अर्धच्छेदनि के अर्धच्छेदनि का जो प्रमाण होय, सोई पल्य की वर्गणलाका का प्रमाण, सो पल्य ते उपरि दूसरी बार पल्य की वर्गगलाका प्रमाण स्थान भए सूच्यंगुल हो है । तातै दूणी पल्य की वर्गशलाका प्रमाण गयगल की दर्गणलाका कही । अथवा विरलन राशि पल्य का अर्धच्छेद, तिनिके ने प्रच्छेद, तिनिविप देय राशि पल्य, ताका अर्वच्छेदनि के अर्धच्छेदनि को जोडे, मुन्यगल की वर्गणलाका हो है । सो पल्य के अर्घच्छेदनि का अर्धच्छेद प्रसारण पल्य की वर्गगलाका है । सो इहां भी दूणी भई, सो या प्रकार भी पल्य की वर्गशलाका नंगी नूच्यगुल की वर्गशलाका है । वहुरि प्रतरागल है, सो द्विरूप वर्गधारा विप न है । नाकी वर्गशलाका अर्बच्छेद यथा योग्य धारानि विषै प्राप्त जानने । तहां 'म दुरिमवगे दुगुणा-दुगुणा हवति अछिदा' इस सूत्र करि वर्ग ते ऊपरला वर्ग नविणे दणा-दूगा अर्धच्छेद कहे, तातै इहां सूच्यंगुल के अर्धच्छेदनि ते दूणे प्रतरांगुल प्रन्टेद जानने । अथवा गुण्य पर गुणकार का अर्धच्छेद जोडें राशि का अर्ध सो, नान हां मृत्र्यंगल गुण्य की मूच्यगुल का गुणकार है, तातै दोय सूच्यंगुल
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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