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________________ [ गोम्मटसार जौवकाण्ड गाया ११७ ताका समाधान - जैसे ग्रहमिद्रनि के सप्तम नरक पृथ्वी पर्यंत गमन शक्ति है, तथापि इच्छा बिना कदाचित् गमन न हो है । तैसे सर्वावधि विषे असी शक्ति है - इतने क्षेत्र विपं जो रूपी पदार्थ होइ तौ तितने को जाने, परतु तहां रूपी पदार्थ नाही, तातं तो शक्ति व्यक्त न हो है । *} बहुरि ता संख्यात प्रसंख्यात स्थान जाइ स्थिति वंधाध्यवसाय स्थाननि की वर्गगानाका अर अर्थच्छेद पर प्रथम मूल हो है । याको एक वार वर्गरूप कीये स्थितित्रवाध्यवसाय स्थान हो है, ते कहा ? सो कहिये हैं ज्ञानावरणादिक कर्मनि का ज्ञान की आवरना इत्यादिक स्वभाव करि संयुक्त रहने का जो काल, ताको स्थिति कहिये । तिसके वंध कों कारणभून जे परिणामनि के स्थान, तिनिका नाम स्थितिबंधाध्यवसाय स्थान है । बहुरि नाते असंख्यात असंख्यात वर्गस्थान जाइ अनुभागवंधाध्यवसाय स्थाननि की वर्गगालाका ग्रर अर्धच्छेद र प्रथम मूल हो है । ताकौ एक वार वर्गकी अनुभागववाध्यवसाय स्थान हो है । ते कहा ? नो कहिये है - ज्ञानावरणादि कर्मनि का वर्ग, वर्गग्गा, स्पर्धक, गुणहानि उता जो ग्रविभाग प्रतिच्छेदति का समूहरूप अनुभाग, ताके वध कौ जे परिणाम, तिनके स्थाननि का नाम अनुभागववाध्यवसाय स्थान है । विसाय स्थान र अनुभागववाध्यवसाय स्थाननि का विशेष व्याख्यान के अंत अधिकार विषै लिखेंगे । वहुरि ताते असख्यात असंख्यात नगद गरीरनि की उत्कृष्ट संख्या का वर्गशलाका ग्रर अर्धच्छेद ग्रर ही है।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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