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________________ 1. R m पप्रतिष्ठित गूक्ष्मनिगोद १७| चादर पात २२ अप्रतिष्ठित तेंद्री ५५ चौद्री तेद्री ६० गौरनी 1।। ।। पा : पृ.पो | परोक १२ मी गात १८ तेग १६ | तेज २३ अग् २४ | प्रत्येक ५० पेत्री | ५६ केंद्री ५७ | ६१ येत्री ६२ Yो ५i fiगोर १०/ १३ रोमी १४ | अप २० पृथ्वी | पृथ्वी २५ निगोद | ५१ तेंद्री ५२ अप्रतिष्ठित ५८ अप्रतिष्ठित पत्येक - पतिष्ठिा प्रत्येक | गौमी १५ पनद्री | २१ पनि पच | २६ प्रतिष्ठित | चौद्री ५३ पचेद्री | पनेंद्री ५६ इनि ६३ पचेद्री ६४ . | पर्याप्तनि की पा ११ शानदा१६ अनि पाच पर्याप्ती प्रत्येक २७ इनि ५४ इनि पान पाच अप्रर्याप्तनि | इनि पाच पर्यापागाहना। अपर्याप्तनि की अपर्याप्त नि की जपन्य अवगा- छहो प्रर्याप्तनि । पर्याप्तनि की की उत्कृष्ट अव- प्तनि की उत्कृष्ट जापग प्रवगा- जपन्य अवगाहना। की जघन्य अव- जघन्य अवगा- | गाहना। अवगाहना। हना। गाहना। हना। सूक्ष्मनिगोद २८ | वादर वात ३३ वात २६ तेज ३० | तेज ३४ अप् ३५ अप् ३१ पृथ्वी | पृथ्वी ३६ निमोद ३२ इनि पाच | ३७ प्रतिष्ठित अपर्याप्तनि की | प्रत्येक ३८ इनि उत्कृष्ट अवगा- | छहो अपर्याप्तनि हना। की उत्कृष्ट अवगाहना। सूक्ष्मनिगोद ३६ वादर वात ४४ घात ४० तेज ४१ | तेज ४५ अप् ४६ अप् ४२ पृथ्वी | पृथ्वी ४७ निगोद ४३ इनि पचपर्या- | ४८ प्रतिष्ठित प्तनि की उत्कृष्ट | प्रत्येक ४६ इनि | छही पर्याप्तनि अवगाहना। की उत्कृष्ट अवगाहना।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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