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________________ २००] [ गोम्मटसार जीवकास गाथा ६५ अवगाह है । याका क्षेत्रफल कहिए है - समान प्रमाण लीए खंड कल्पै जितने खंड होड, तिस प्रमाण का नाम क्षेत्रफल है । तहां ऊचा, लम्बा, चीडा क्षेत्र का ग्रहण जहां होइ, तहा घन क्षेत्रफल वा खात क्षेत्रफल जानना । बहुरि जहां ऊचापना की विवक्षा न होइ अर लम्बा-चौडा ही का ग्रहण होइ, तहां प्रतर क्षेत्रफल वा वर्ग क्षेत्रफल जानना । वहुरि जहा ऊचा-चौडापना की विवक्षा न होइ, एक लम्बाई का ही ग्रहण होइ, तहां श्रेणी क्षेत्रफल जानना । सो इहा खात क्षेत्रफल कहिए है । तहा कमल गोल है, तातै गोल क्षेत्र का क्षेत्रफल साधनरूप करण सूत्र करि साधिए है - वासोत्तिगुणो परिही, वासचउत्थाहदो दु खेत्तफलं । खेतफलं देहगुणं, खादफलं होइ सव्वत्थ ।। याका अर्थ - व्यास, जो चौडाई का प्रमाण, तातै तिगुणा गिरदभ्रमणरूप जो परिधि, ताका प्रमाण हो है । वहुरि परिधि को व्यास का चौथा भाग करि गुण, प्रतररूप क्षेत्रफल हो हैं । वहुरि याको वेध, जो ऊचाई का प्रमाण, ताकरि गुण सर्वत्र वातफल हो है । सो इहा कमल विष व्यास एक योजन, ताकी तिगुणा कीए परिधि तीन योजन हो है । याको व्यास का चौथा भाग पाव योजन करि गणे, प्रतर क्षेत्रफल पोग योजन हो है । याको वेध हजार योजन करि गुण, च्यारि करि अपवर्तन कीए, योजा स्वरूप कमल का क्षेत्रफल साड़ा सात सौ योजन प्रमाण हो है। भाव- एक-एक योजन लम्बा, चौडा, ऊचा खड कल्पं इतने खड हो है । बलि दीद्रियनि विपै तीहि स्वयभूरमण समुद्रवर्ती शख विष वारह योजन लम्बा, योजन का पाच चौथा भाग प्रनाग चौडा, च्यारि योजन मुख व्यास करि युक्त, असा उत्कृप्ट अवगाह है । याका क्षेत्रफल करणसूत्र करि साधिए है - व्यासस्तावद् गुरिणतो, बदनदलोनो मुखार्धवर्गयुतः। हिरणश्चतुभिर्भक्तः, पंचगुणः शंखखातफलं ॥ यामा नर्थ - प्रथम व्यास को व्यास करि गुणिए, तामे मुख का आधा प्रमाण घवाड, तामे मुन्न का प्राधा प्रमाण का वर्ग जोडिए, ताका दूणा करिए, ताको च्यारि
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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