SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका 1 की विवक्षा कौन करि सामान्य आलाप करि गुणनी । बहुरि दूसरी पंक्ति दोय जे पर्याप्त, अपर्याप्त भेद, तिनि करि गुणनी । बहुरि प्रथमा कहिए तीसरी पक्ति, सो तीन जे पर्याप्त, निर्वृत्ति अपर्याप्त, लब्धि अपर्याप्त भेद तिनि सामान्य करि गुरणनी । इहां दूसरी, तीसरी दोय पक्ति अप्रथमा है । तथापि दूसरी पंक्ति hi ही कही, तीहिकरि प्रथमा से शब्द करि अवशेष रही पक्ति तीसरी सो ग्रहण करी है । अपेक्षा स्थान [ १८७ अब कहे भेदनि की यंत्र में रचना अनि करि लिखिये है । भावार्थ - एक को आदि देकरि उगणीस पर्यन्त जीवसमास के स्थान कहे । तिनिका सामान्यरूप ग्रहण कीएं एक आदि एक-एक बधते उगरणीस पर्यन्त, स्थान हो है । इहां सामान्य विषै पर्याप्तादि भेद गर्भित जानने । बहुरि तिन ही एक-एक के पर्याप्त, अपर्याप्त भेद कीए दोय कौ आदि देकर दोय - दोय बघते अडतीस पर्यन्त स्थान हो है । इहा अपर्याप्त विषे निर्वृत्ति पर्याप्त, लब्धि पर्याप्त दोऊ गर्भित जानने । बहुरि तिन ही एक-एक के पर्याप्त, निर्वृत्ति अपर्याप्त, लब्धि अपर्याप्त भेद कीये तिनिकौ आदि देकर तीन-तीन बधते सत्तावन पर्यन्त स्थान हो है । इहा जुदे-जु भेद जानने । १ ४ ५ ६ S १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १६ १६० जीवसमास के स्थानकनि का यंत्र पर्याप्त, अपर्याप्त अपेक्षा स्थान २ row is ४ १० १२ १४ १६ १८ २० २२ २४ २६ २८ ३० ३२ ३४ ३६ ३८ ३८० पर्याप्त, निर्वृत्ति अपर्याप्त, लब्धि अपर्याप्त अपेक्षा स्थान ३ ६ & १२ १५ १८ २१ २४ २७ ३० ३३ ३६ ३६ ४२ ४५ ४८ ५१ ५४ ५७ ५७०
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy