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________________ १६४ ] [ गोम्मटसार जीवकाण्ड गाया ह हानि ते सर्वत्र आधा-आधा जानना, जैसे क्रम ते सर्वद्रव्य विषै नानागुणहानि अनंत हैं । बहुरि इहां प्रथम गुणहानि की प्रथम वर्गणा ते लगाइ अंत वर्गरणा पर्यन्त जे वर्गणा, तिनिके वर्गनि विषे अविभागप्रतिच्छेदनि का प्रमाण प्रवाहरूप पूर्वोक्त प्रकार अनुक्रमरूप बघता-बघता जानना । अब इस कथन को अंकसंदृष्टि करि दिखाइए है । सर्वद्रव्य इकतीस सै ३१००, स्थिति चालीस ४०, गुणहानि आयाम आठ ८, दोगुण हानि सोलह १६, नानागुणहानि पांच ५, अन्योन्याभ्यस्त राशि बत्तीस ३२, तहां एक घाटि अन्योन्याभ्यस्तराशि ३१ का भाग सर्वद्रव्य ३१०० कौ दीएं सौ पाये, सो अंत गुणहानि का द्रव्य है । याते दूणा दूणा प्रथम गुणहानि पर्यंत द्रव्य जानना । १६००, ८००, ४००, २००, १०० । बहुरि साधिक ड्योढ गुणहानि का भाग सर्वद्रव्य को दीए, दोय से छप्पन (२५६) पाए, सो प्रथम गुणहानि विषै प्रथम गुणहानि की प्रथम वर्गणा विषै इतना इतना घटता वर्ग जानना ऐसे वर्गनि का प्रमाण है । याको दो गुणहानि सोलह (१६) का भाग दीए सोलह पाए, सो चय का प्रमाण है । सो द्वितीयादि वर्गणा विषै इतना- इतना घटता वर्ग जानना । अँसै श्राठ वर्गणा प्रथम गुणहानि विषै जाननी । बहुरि द्वितीय गुग्गहानि विषै आठ वर्गरणा हैं । तिनि विषे पूर्व ते द्रव्य वा चय का प्रमाण श्राधा श्राघा जानना | असे आधा-आधा क्रम करि पाच नानागुणहानि सर्व द्रव्य विप हो हैं । इनकी रचना - संदृष्टी अपेक्षा गुरणहानि की वर्गरणानि विषै वर्गनि के प्रमाण का यंत्र है । प्रथम द्वितीय तृतीय चतुर्थ पंचम गुणहानि गुणहानि गुणहानि गुणहानि गुणहानि ७२ Το १४४ १६० १७६ १६२ २०८ τη ४४ ६ ४८ ५२ ५६ ६० ६४ १०४ २२४११२ २४० १२० २५६ १२८ ३६ ४० जोड़ जोड़ १६०० ८०० जोड़ ४०० १८ २० १० २२ ११ २४ १२ २६ १३ २८ १४ w ३० १५ ३२ १६ जोड़ जोड़ २०० १००
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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