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________________ १३८ ] [ गोम्मटसार नीवकाण्ड गाथा ४६ है । अथवा मध्यवन की गच्छ करि गुण भी सर्वधन का प्रमाण आवै है । जैसे श्रेणी व्यवहाररूप गणित का किचित् स्वरूप प्रसंग पाइ कह्या । अव अधिकारभूत अधःकरण विष सर्वधन आदि का वर्णन करिए है । तहां प्रथम अंकसंदृष्टि करि कल्पनारूप प्रमाण लीएं दृष्टांतमात्र कथन करिए है । सर्व अधःकरण का परिणामनि की संख्यारूप सर्वधन तीन हजार वहत्तरि (३०७२) । वहुरि अव.करण के काल का समयनि का प्रमाणरूप गच्छ सोलह (१६) । वहुरि समयसमय परिणामनि की वृद्धि का प्रमाणरूप चय च्यारि (४) । वहुरि इहां संख्यात का प्रमाण तीन (३) । अव उर्व रचना विष धन ल्याइए है । सो युगपत् अनेक समय की प्रवृत्ति न होड, तातै समय संबंधी रचना ऊपरि-ऊपरि ऊर्ध्वरूप करिए है । तहां आदि धनादिक का प्रमाण ल्याइये है। 'पदकदिसंखेण भाजियं पचयं' इस सूत्र करि सर्वधन तीन हजार वहत्तरी, ताको पद सोलह की कृति दोय से छप्पन, ताका भाग दीएं बारह होइ । अर ताकौं संख्यात का प्रमाण तीन, ताका भाग दीए च्यारि होइ । अथवा टोय सौ छप्पन की तिगुणा करि, ताका भाग सर्व वन की दीये भी च्यारि होइ सो समय-समय प्रति परिणामनि का चय का प्रमाण है । अथवा याकौं अन्य विधान करि कहिए है । सर्वधन तीन हजार वहत्तरि, ताकौं गच्छ का भाग दीएं एक सौ वाणवै, तामैं पागै कहिए है मुख का प्रमाण एक सौ वासठि, सो घटाइ तीस रहे । इनको एक घाटि गच्छ का आधा सादा सात, ताका भाग दीये च्यारि पाए, सो चय जानना । अथवा 'पादिधनोनं गणितं पदोनपदकृतिदलेन संभजितं' इस सूत्र करि आगे कहिए है - आदिवन पचीस से वागवे, तीहकरि रहित सर्ववन च्यारि सै असी, ताकी पट की कृति दोय सै छप्पन विपै पद सोलह घटाउ, अवशेप का आधा कीये, एक नी वीन होड, ताका भाग दीये च्यारि पाये, सो चय का प्रमाण जानना । बहुरि 'व्येकपदार्पघ्नचयगुणो गच्छ उत्तरधन' इस सूत्र करि एक घाटि गच्छ पंद्रह, ताका आधा माढा सात (३) ताकी चय च्यारि, ताकरि गुणं तीस, नागं गच्छ मोलह करि गुणे, च्यारि सौ असी चयवन का प्रमाण हो है । वहुरि इस चयन परि नयन तीन हजार बहतरि मो हीन कीये, अवशेष दोय हजार पांच
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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