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________________ [ ४ ] उन्नीसवां अधिकार: प्राहारमार्गणा-प्ररूपरणा ७२६-७२६ पाहार का स्वरूप, आहारक अनाहारक भेद, समुद्घात के भेद, समुद्घात का स्वरूप ७२६-७२७ पाहारक और अनाहारक का काल प्रमाण, आहारमार्गणा मे जीवसख्या ७२८-७२६ वीसवां अधिकार : उपयोग-प्ररूपणा ७३०-७३२ उपयोग का स्वरूप, भेद तथा उत्तर भेद, साकार अनाकार उपयोग की विशेषता उपयोगाधिकार मे जीवसंख्या ७३०-७३२ इक्कीसवां अधिकार : अन्तर्भावाधिकार ७३३-७५० गुणस्थान और मार्गणा में शेष प्ररूपणानो का अन्तर्भाव, मार्गणाओ मे जीवसमासादि ७३३-७४२ गुणस्थानो मै जीवसमासादि मार्गणाओ मे जीवसमास ७४१-७५० वाईसवां अधिकार: पालापाधिकार ७५१-८५८ नमस्कार और आलापाधिकार के कहने की प्रतिज्ञा ७५१ गुणस्थान और मागंणामो के आलापो को सख्या, गुणस्थानों में पालाप, जीवसमास की विशेपता, वीस भेदो की योजना, आवश्यक नियम ७५१-७६६ यत्र रचना ७६७-८५५ गुणस्थानातीत सिद्धो का स्वरूप, वीस भेदो के जानने का उपाय, अन्तिम आशीर्वाद, ८५५-८५८ विषयजनित जो सुख है वह दुख ही है क्योकि विषय-सुख परनिमित्त से होता है, पूर्व और पश्चात् तुरन्त ही आकुलता सहित है और जिसके नाश होने के अनेक कारण मिलते ही हैं, आगामी नरकादि दुर्गगति प्राप्त करानेवाला है ऐसा होने पर भी वह तेरी चाह अनुसार मिलता ही नही, पूर्व पुण्य से होता है, इसलिए विषम है । जैसे खाज से पीडित पुरुप अपने अंग को कठोर वस्तु से खुजाते हैं वैसे ही इन्द्रियो से पीड़ित जीव उनको पीडा सही न जाय तव किंचितमात्र जिनमें पीडा का प्रतिकार सा भासे ऐसे जो विषयसख उनमे झपापात करते हैं, वह परमार्थ रूप सुख नहीं, और शास्त्राभ्यास करने से जो सम्यज्ञान हुआ उमसे उत्पन्न आनन्द, वह सच्चा सुख है। जिससे वह सुख स्वाधीन है, आकलना रहित है, किसी द्वारा नप्ट नही होता, मोक्ष का कारण है, विपम नही है। जिस प्रकार वाज की पीडा नही होती तो सहज ही सुखी होता, उसी प्रकार वहाँ इन्द्रिय पीड़ने के लिए समर्थ नही होती तब सहज ही सुख को प्राप्त होता है। इसलिए विपयसुख को छोड़कर गास्यान्यास करना, यदि सर्वथा न छुटे तो जितना हो सके उतना छोड़कर मान्यान्याम मे तत्पर रहना। इसी ग्रन्थ से अनुदित, पृष्ठ - १३ व १४
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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