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________________ [ गोम्मटसार जीवकाण्ट गाया ४१ ११४ ] का, जानने का उपाय कहिए है । कोऊ जेथवां प्रमाद पूछ्या होड, ताको अपना प्रमाद पिड का भाग दीजिए, जो अवशेष रहै, सो अक्षस्थान जानना । वहरि जेते पाए होइ, तिनिविषै एक जोडि, जो प्रमाण होइ, ताकी द्वितीय प्रमाद पिड का भाग देना, तहां भी तैसे ही जानना । जैसे ही क्रम ते सर्वत्र करना। इतना विणेप जानना, जो जहा भाग दीएं राशि शुद्ध होइ जाय, कछु भी अवशेप न रहै; तहा तिस प्रमाद का अत भेद ग्रहण करना । बहुरि तहां जो लब्धराशि होड, तिहि विपै एक न जोडना । बहुरि असे करते अंत जहा होइ, तहां एक न जोड़ना, सो कहिए है । जेथवा प्रमाद पूछया, तिस विवक्षित प्रमाद की संख्या की प्रथम प्रमाद विकथा, ताका प्रमाण पिड च्यारि, ताका भाग देड, अवशेप जितना रहै, सो अक्षस्थान है। जितने अवशेष रहै, तेथवा विकथा का भेद, तिस पालाप विप जानना । बहुरि इहा भाग दीए, जो पाया, तीह लव्धराशि विपै एक और जोड़ना । जोडे जो प्रमाण होइ, ताका ऊपरि का दूसरा प्रमाद कषाय, ताका प्रमारण पिड च्यारि, ताका भाग देइ, जो अवशेष रहै, सो तहां अक्षस्थान जानना । जितने अवशेप रहै, तेथवां कषाय का भेद तिस आलाप विष जानना बहुरि जो इहा लव्धराशि होड, तीहि विपै एक जोडि, तीसरा प्रमाद इंद्रिय, ताका प्रमाण पिड पाच, ताका भाग दीजिए। बहुरि जहा अवशेष शून्य रहै, तहां प्रमादनि का अंतस्थान विपै ही अक्ष तिप्ठे है । तहा अंत का भेद ग्रहण करना, बहुरि लव्धिराशि विषे एक न जोडना । . इहां उदाहरण कहिए है - काहूने पूछया कि असी भगनि विपं पंद्रहवा प्रमाद भंग कौन है ? तहा ताके जानने को विवक्षित नष्ट प्रमाद की संख्या पंद्रह, ताको प्रथम प्रमाद का प्रमाण पिंड च्यारि का भाग देइ तीन पाए, अर अवशेष भी तीन रहै, सो तीन अवशेष रहै, तातै विकथा का तीसरा भेद राष्ट्रकथा, तीहि विषै अक्ष है, तहां अक्ष देइकरि देखे । भावार्थ - तहां पंद्रहवां आलाप विष राष्ट्रकथालापी जानना । बहुरि तहां तीन पाए थे । तिस लब्धराशि तीन विष एक जोडे, च्यारि होइ, ताको ताके ऊपरि कपाय प्रमाद, ताका प्रमाण पिंड च्यारि, ताका भाग दीएं अवशेष शून्य है, किछु न रह्या, तहां तिस कषाय प्रमाद का अंत भेद जो लोभ, ताका आलाप विष अक्ष सूचै है । जाते जहां राशि शुद्ध होइ जाइ, तहां ताका अंत भेद ग्रहण करना।
SR No.010074
Book TitleSamyag Gyan Charitra 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1989
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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