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________________ प्राचार्य कुन्दकुन्द ] [ १५ जिनचन्द्र का भी नाममात्र ही ज्ञात है, इनके सम्बन्ध में भी विशेष जानकारी प्राप्त नहीं होती। हो सकता है प्राचार्य कुन्दकुन्द के समान उनके दीक्षागुरु के भी दो नाम रहे हों। नन्दिसंघ में दीक्षित होते समय बालब्रह्मचारी अवयस्क होने के कारण उनका नाम कुमारनन्दी रखा गया हो, बाद में पट्ट पर आसीन होते समय वे जिनचन्द्राचार्य नाम से विश्रुत हुए हों। पट्टावली में जिनचन्द्र नामोल्लेख होने का यह कारण भी हो सकता है। पट्टावली में माघनन्दी, जिनचन्द्र और पद्मनन्दी ( कुन्दकुन्द ) क्रम आता है। नन्दिसंघ में नन्दयन्त (नन्दी है अन्त में जिनके ऐसे ) नाम होना सहज प्रतीत होता है । पञ्चास्तिकायसंग्रह की तात्पर्यवृत्ति नामक संस्कृत टीका के आरम्भ में समागत जयसेनाचार्य का कथन मूलतः इसप्रकार है : "अथ श्रीकुमारनंविसिद्धान्तदेव शिष्येः प्रसिद्ध कथान्यायेन पूर्वविदेहं गत्वा वीतरागसर्वज्ञश्रीसीमंधरस्वामितीर्थंकरपरमदेवं दृष्ट्वा तन्मुखकमल विनिर्गत दिव्यवारणीश्रवरणावधारितपदार्थाच्छुद्धात्मतत्वादिसार्थं गृहीत्वा पुनरप्यागतः श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्यदेवः पद्मनन्द्याद्यपराभिधेयैरन्तस्तत्वबहिर्तस्वगौरमुख्यप्रतिपत्यर्थमथवा शिवकुमारमहाराजादिसंक्षेपरुचिशिष्यप्रतिबोधनार्थं विरचिते पञ्चास्तिकायप्रामृतशास्त्रे यथाक्रमेणाधिकारशुद्धिपूर्वकं तात्पर्यार्थव्याख्यानं कथ्यते । श्री कुमारनन्दि सिद्धान्तदेव के शिष्य प्रसिद्धकथान्याय से पूर्वविदेह जाकर वीतराग - सर्वज्ञ श्री सीमन्धरस्वामी तीथंकर परमदेव के दर्शन कर उनके मुखकमल से निसृत दिव्यध्वनि के श्रवरण से शुद्धात्मादि तत्त्वों के साथ पदार्थों को अवधारण कर - ग्रहण कर समागत - श्री पद्मनन्दी आदि हैं अपरनाम जिनके उन - श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव के द्वारा अन्तस्तत्त्व और बहिर्तत्त्व को गौण और मुख्य प्रतिपत्ति के लिए अथवा शिवकुमार महाराज आदि संक्षेप रुचिवाले शिष्यों को समझाने के लिए रचित पञ्चास्तिकायप्राभूत शास्त्र में अधिकारों के अनुसार यथाक्रम से तात्पर्यार्थ का व्याख्यान किया जाता है ।" उक्त उद्धरण में प्रसिद्ध कथान्याय के आधार पर कुन्दकुन्द के विदेहगमन की चर्चा भी की गई है, जिससे यह प्रतीत होता है क़ि
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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