SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र २१-२३ ] प्रथमाधिकरणे तृतीयोऽध्यायः [५५ एवं काव्याङ्गान्युपदिश्य काव्यविशेषकथनार्थमाह काव्यं गद्यं पद्यञ्च । १, ३, २१ । गद्यस्य पूर्वनिर्देशो दुर्लक्ष्यविशेषत्वेन दुर्बन्धत्वात् । तथाहुः'गद्य कवीनां निकष वदन्ति ॥ २१ ॥ तच्च त्रिधा भिन्नमिति दर्शयितुमाहगद्यं वृत्तगन्धि चूर्णमुत्कलिकाप्रायञ्च । १, ३, २२ । तल्लक्षणान्याह पद्यभागवद् वृत्तगन्धि । १, ३, २३ । पद्यस्य भागाः पद्यभागाः। तद्वद् वृत्तगन्धि । यथा'पातालतालुतलवासिषु दानवेषु' इति । - - का निरूपण कर अब अगले १० सूत्रों मे काव्य के भेदो का निरूपण प्रारम्भ करते हैं। इस प्रकार काव्य के साधनो का कथन करके काव्य के भेदों के निरूपण के लिए कहते है काव्य गद्य और पद्य [ रूप से दो प्रकार का होता है। [काव्य के इन दोनो भेदों में से ] गद्य का पहले निर्देश उसको विशेषतामों के दुर्जेय और उसकी रचना के कठिन होने के कारण किया गया है। जैसा कि [ लोकोक्ति में ] पहा है गद्य को कवियो की [ प्रतिभा को ] कसोटी कहते है ॥२१॥ वह [ गद्य ] भी तीन प्रकार का होता है यह दिखलाने के लिए गध (१) वृत्तगन्धि, (२) चूर्ण, और (३) उत्कलिकाप्राय [ तीन प्रकार का होता है ॥ २२ ॥ उन [ तीनों गधभेदो ] के लक्षण कहते है [जो गद्य पढने में] पद्यभाग से युक्त [ या उसके समान प्रतीत हो [उसमें वृत्त प्रर्थात् छन्द की गन्ध होने से ] उसको 'वृत्तगन्धि' कहते है । 'पद्यभागवत्' का समास कहते है ] पद्य का भाग पद्यभाग यह षष्ठी समास है ] उससे युक्त [ या उसके समान गद्य ] 'वृत्तगन्धि' [कहलाता है। पाताल के ताल के तले में रहने वाले वानवो में।
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy