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________________ श्रर्थात् जिस प्रकार सज्जन के हृदय में शौर्य आदि का वास रहता है। इसी प्रकार विदग्ध सहृदय के हृदय में स्वभाव से ही दश गुण निवास करते हैं । दास की यह स्थापना परम्परा से कुछ भिन्न है । परम्परा के अनुसार स्थायी भावों के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वे वासना रूप में सहृदय के हृदय में वर्तमान रहते हैं । दास गुणों की भी यही स्थिति मानते हैं उनका तर्क कदाचित् यह है कि रस के धर्म होने के कारण गुणों का भी वासना से सहज सम्बन्ध है, और शौर्य आदि गुणों की भाँति वे भी श्रात्मा में ही निवास करते हैं । मम्मट श्रादि रस ध्वनिवादी भी गुणों को चित्त की दुति, दीप्ति तथा व्याप्ति ( समर्पकत्व) रूप मानते हुए इस तथ्य की ओर संकेत करते हैंऔर इसी कारण वे गुणों की संख्या दश न मान कर केवल तीन मानते हैं दास का भी यही मत है : प्राचीन आचार्यों के अनुसार दश गुणों का वर्णन करने के उपरांत वे मूल गुणों की संख्या केवल तीन मानते हैं । 1 दश गुणों के वर्गीकरण में दास ने फिर परम्परा से भिन्न मार्ग का अवलम्बन किया है। उन्होंने गुणों के चार वर्ग किये हैं: (१) अक्षर - गुणा--- माधुर्य, भोज तथा प्रसाद (२) दोषाभाव-रूप गुण - समता, कान्ति और उदारता (३) अर्थ -गुण---अर्थम्यक्ति और समाधि (४) वाक्य-गुण- श्लेष तथा पुनरुक्तिप्रकाश | अक्षर गुन माधुर्य, ओज प्रसाद विचारि । समता कान्ति उदारता, दूषन-हरन निहारि ॥ अर्थव्यक्ति समाधि अर्थ करै प्रकास | वाक्यन के गुन श्लेष श्ररु, पुनरुक्ती- परकास | यहां पहली बात तो यही विचारणीय है कि दास ने पुनरुक्तिप्रकाश नामक एक नये गुण की कल्पना की है और वामनादि के सौकुमार्य गुण को छोड़ दिया है। एक शब्द बहु बार जहँ, परै रुचिरता अर्थ । पुनरुक्तीपरकाश गुन, बरनै बुद्धि समर्थ ॥ दास ने सौकुमार्य के स्थान पर इस नवीन गुण को कल्पना क्यों की यह कहना कठिन है, फिर भी यह अनुमान किया जा सकता है कि सौकुमार्य की ( १६० )
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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