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________________ उसको वर्ण योजना प्रगाढ होती है जिसके प्रारम्भ में तथा अंत में गुरु वर्णों का प्रयोग रहता है क्यों कि इस प्रकार प्रयुक्त गुरु वर्णों में प्रायः विस्फोट का प्रभाव होता है । इस शैली की पद-रचना में क्रमिक श्रारोह रहता है और रूपक, पर्यायोक्त तथा 'अन्योक्ति-रूपक श्रादि अलंकारों का सयत्न प्रयोग होता है : रूपकों से शैली में गरिमा और रमणीयता का समावेश होता है, अन्योक्तिरूपक के प्रयोग से शैली उदात्त बनती है— क्यों कि अन्योति-रूपक रात्रि और अंधकार का व्यंजक है। इसी प्रकार वक्रतामूलक अलंकार तथा समासगुणयुक्त पदावली का भी यही उपयोग है । मधुर अथवा मसृण शैली शोभा और कान्तियुक्त होती है । इसके विषय हैं परियों के उपवन, विवाह उत्सव - गीत, प्रम-कथाएं श्रादि - इस प्रकार की विषय-वस्तु में ही एक प्रकार की उज्ज्वलता एवं कांति होती है । इस शैली के उपादान है मधुर शब्द, मसृण गुम्फ, छन्द-लय की अन्तर्धारा, आदि । मधुर शब्दों से अभिप्राय ऐसे शब्दों का है जो किसी मधुर चित्र को व्यंजना करते हों अथवा जिनकी ध्वनि मधुर हो : उदाहरण के लिए 'गुलाबरंजित ' शब्द को चित्र - व्यंजना रमणीक है, और 'ल' 'न' आदी वर्णों की ध्वनि मधुर । मसृण गुम्फ का अर्थ यह है कि वर्ण और शब्द एक दूसरे में घुलते चले जाएं । इस प्रकार रचना में एक मधुर तारल्या जाता हैइसे हो डिमैट्रियस ने संगीत की अंतर्धारा कहा है । वे छन्द को नहीं छन्द की व्यंजना को शैली का गुण मानते हैं । तीसरी शैली है प्रसादमयी (प्रसन्न ) शैली जिसका मूल लक्ष्य है स्पष्टता और सरलता । श्रतएव इसमें नित्य प्रति की भाषा का प्रयोग रहता है जिससे सभी सामान्य तत्वों, जैसे रूपक, समास, नव-रचित शब्द आदि का बहिष्कार कर दिया जाता है। दीर्घ स्वर व्यंजन - योजना, विचित्र लकार, अत्यधिक समासगुण (श्लेष) श्रादि समस्त अलंकरण-प्रसाधन इस शैली के लिए त्याज्य हैं | वास्तव में इसका प्राण तत्व है अर्थ-वैमल्य - और अर्थ वैमल्य के प्रमुख उपादान हैं १. सामान्य शब्दावली २. सामान्य पद - रचना ३. लघु वाक्य ४. लघु वर्ण-योजना ५. श्रानुगुणत्व (एक्यूरेसी) - अर्थात् 'न्यून'श्रनतिरिक्त' शब्द प्रयोग | ये ही प्रसन्न शैली के भी आधारभूत गुण है । डैमेट्रियस की चौथी शैली है श्रोजस्वी । इस शैली के तत्व हैं १. उल्बण १ एलिगरी - ( ११२ )
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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