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________________ प्रकार का) हो सकता है । रस भी कथानायक-निष्ठ और उसके विरोधी (प्रतिनायक)-निष्ट (दो प्रकार का) हो सकता है । कथानायक भी धीरोदात्यादि भेद मे विभिन्न मुख्य नायक अथवा उसके बाद का (उपनायक पीठमद) हो हो सकता है । इस प्रकार वन्ना के अनेक विकल्प हैं"। (हिन्दी ध्वन्यालोक पृ० २४४)। वास्तव में यह वक्ता के स्वभाव और मन : स्थिति की व्याख्या हैवक्ता के स्वभाव और मन स्थिति के अनुकूल ही रीति का प्रयोग उचित है। "इसी प्रकार वाच्य (अर्थ भी ) ध्वनिरूप (प्रधान) रस का अंग (अभिव्यंजक) अथवा रसाभास का अंग (अभिव्यक्षक), अभिनेयार्थ या अनमिनेयार्थ, उत्तम प्रकृति में प्राश्रित, अथवा उसमे मिन्न (मध्यम, अधम) प्रकृति में आश्रित-इस तरह नाना प्रकार का हो सकता है। (हिन्दी श्वन्यालोक, पृ० २४४) वाच्य से अभिप्राय यहां विषय-अथवा विषयवस्तु या वर्ण्य वस्तु का है जो निश्चय ही रीति का नियामक है क्योंकि रीति का प्रयोग निस्संदेह ही वर्य विषय पर निर्भर रहता है। सुकुमार विषयों की वर्णन-शैली में मार्दव और परुष विषयों की शैली में परुषता स्वाभाविक ही है। अानन्दवर्धन के अनुसार तीसरा नियामक हेतु है विषय | विषय का अर्थ, जैसा कि स्वयं लेखक ने ही स्पष्ट कर दिया है, विषय-वस्तु अथवा वर्य विषय नहीं है: उसका उल्लेख तो वाच्य के द्वारा किया ही जा चुका है। विषय मे यहां काव्य के रूप का अभिप्राय है। 'मुक्तक, पर्यायवन्ध, परिकथा खण्डकया, सकल कथा, सर्गबन्ध (महाकाव्य), अभिनेयार्थ (रूपक), श्राख्यायिका और कथा श्रादि (काध्य के) अनेक प्रकार हैं। इनके आश्रय से भी मंघटना या रीति में मेट हो जाता है।" (हि. ध्व० पृ० २४.)। संस्कृत काव्य-शास्त्र में बाह्यांगों के आधार पर वर्गीकरण करने की प्रवृत्ति कुछ अधिक बलवती रही है। उसमें प्रायः अनावश्यक भेट-विस्तार किया गया है इसीलिए उमके अनेक काव्य-मेट आगे चलकर मान्य नहीं हुए : विशेषकर शैली मात्र पर श्राश्रित काव्य-रूप प्रायः सभी लुप्त हो चुके हैं। फिर भी आनन्दवर्धन के उपर्युक मन्तव्य से असहमत होने के लिए कोई अवकाश नहीं है। महा. फाव्य और नाटक महश काव्य-रूपों का प्रभाव तो रचना-रीति पर अत्यन्त प्रत्यच ही रहता है-उनके अतिरिक्त अनेक सूक्ष्म भेदों का प्रभाव भी सहन (५०)
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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