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________________ [ २८३ नित्यं संहिता पादेष्वेकपदवदेकस्मिन्निव पदे । तत्र हि नित्या सूत्र ३] पञ्चमाधिकरणे प्रथमोऽध्यायः संहितेत्याम्नायः । यथा संहितैकपदे नित्या नित्या धातूपसर्गयोः । इति । श्रर्घान्तवर्जमर्धान्तं वर्जयित्वा ॥ २ ॥ न पादान्तलघोर्गुरुत्वञ्च सर्वत्र । ५, १, ३ । । एक पद के समान अर्थात् जैसे [ सुरेश, महेश आदि ] एक पद में [ सन्धि नित्य अपरिहार्य है ] इसी प्रकार [ श्लोक के प्रथम, द्वितीय प्रथवा तृतीय और चतुर्थ ] [ चरणो में प्राप्त सन्धि ] नित्य [ अपरिहार्य ] सन्धि होनी चाहिए । वहां [ एकपद में, सहिता ] सन्धि नित्य होती है इस प्रकार का [ श्राम्नाय ] शास्त्र वचन है । जैसे---- एक पद में सन्धि नित्य होती है, और धातु तथा उपसर्ग [ के बीच ] में भी नित्य सन्धि होती है । यह 'अर्धान्त वर्ज' अर्थात् [ श्लोक के ] अर्धान्त को छोड़ कर । अर्थात् ग्लोक के पूर्वार्द्ध के अन्त मे आए हुए और उत्तरार्ध के प्रारम्भ मे आए हुए अक्षरो मे यदि नियम के अनुसार कोई सन्धि प्राप्त होती है तो नित्य सन्धि नही होगी । परन्तु उसको छोड कर श्लोक के पादो मे आए हुए शब्दो मे अथवा प्रथम और द्वितीय चरण के बीच मे या तृतीय और चतुर्थ चरण के बीच मे जहा सन्धि प्राप्त हो वहा सन्धि अवश्य करनी चाहिए । इस प्रकार की सन्धि न करने मे 'विसन्धि' दोप हो जाता है । उसे वामन ने 'विसन्धि' और नए आचार्यो ने 'सन्धि विश्लेप' दोप कहा है । 'दोपाधिकरण' मे इसका निरूपण किया जा चुका है ॥ २ ॥ छन्द शास्त्र मे वृत्त के लघु - गुरु वर्णों की व्याख्या करते हुए 'पादान्तस्थ विकल्पेन' इस नियम के अनुमार पादान्त में स्थित लघु वर्णं विकल्प मे गुरु हो सकता है । अर्थात् पादान्त मे आया हुआ लघु वर्ण आवश्यकतानुसार गुरु या लघु कुछ भी माना जा सकता है । जहा छन्द के लक्षण के अनुमार पादान्त मे लघु अक्षर की आवश्यकता है वहा वह लघु वर्णं गिना जायगा । और जहा गुरु वर्ण की आवश्यकता है वहा पादान्त मे स्थित वह लघु वर्ण गुरु गिना जायगा यह नियम है । इस नियम के विषय में ग्रन्थकार कहते है कि यह नियम सार्वत्रिक नही है । अर्थात् मब छन्दो में यह लागू नही होता है । इन्द्रवजा आदि कुछ छन्दों में अन्तिम लघु वर्ण गुरु हो जाता है परन्तु कुछ छन्दों में वह गुरु नही
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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