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________________ हुए चार श्लोकों में उसका निरूपण किया है : वाणी के अनेक मार्ग हैं जिनमें परस्पर अत्यन्त सूक्ष्म भेद हैं। इनमें से पैदर्भ और गौडीय मार्गों का, जिनका पारस्परिक भेद अत्यन्त स्पष्ट है, अब वर्णन किया जाएगा। श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता, भोज, कान्ति और समाधि-ये दश गुण वैदर्भ मार्ग के प्राण हैं। गौड मार्ग में प्रायः इनका विपर्यय लक्षित होता है । + + + + इस प्रकार प्रत्येक का स्वरूपनिरूपण कर इन दोनों मार्गों का अन्तर स्पष्ट कर दिया है। किन्तु जहां तक प्रत्येक कवि में स्थित (प्रत्येक कवि को अपनी प्रकृति के अनुसार) इनके भेदों का सम्बन्ध है, उनका वर्णन सम्भव नहीं है। दण्डी का उपर्युक्त विवेचन संक्षिप्त होते हुए भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। उनके मन्तव्य का सार इस प्रकार है : (१) रीति का अस्तित्व सर्वथा वस्तुगत नहीं होता : प्रत्येक कवि की अपनी विशिष्ट रीति होती है-कवि अनेफ हैं अतएव रीतियों की संख्या भी अनेक हैं । इस प्रकार दण्डी ने अत्यन्त निर्धान्त शब्दों में रोति में व्यक्ति-तस्व की सत्ता स्वीकार की है। (२) सामान्यतः अपनी अत्यन्त पृथक विशेषताओं के कारण दो मार्ग या रीतियां-वैदर्भ और गौड़ीय दण्डी के समय तक कवियों और काव्यरसिकों में प्रसिद्ध हो चुके थे । दण्डी ने उनका अस्तित्व तो लोक-परम्परा के अनुसार निश्चयरूप से स्वीकार किया है, परन्तु उनको निरपेक्ष नहीं माना अस्त्यनेको गिरा मार्ग. सूक्ष्ममेदः परस्परम् । तत्र वैदर्भगौडीयो वण्येते प्रस्फुटान्तरौ ॥४०॥ श्लेपः प्रसादः समता माधुर्य सुकुमारता ।। अर्थव्यक्तिरुदारत्वमोजः कान्तिसमाधयः ॥ ४ ॥ इति वैदर्भमार्गस्य प्राणा दशगुणाः स्मृताः। एपा विपर्यय प्रायो लक्ष्यते गोडवमनि ॥ ४२ ॥ + + + + इति मार्गदय मिन्न तत्स्वरूपनिरूपणात् ।। तोदास्तु न शक्यन्ते वक्तुं प्रतिकविस्थिताः ॥ १०१ ॥ (प्र० परिच्छेद-काव्यादर्श) (३४).
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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