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________________ ६८ ] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्तो कष्टत्वं यथा- मयुद्गमगर्भास्ते गुर्वाभोगा द्रुमा बभुः ॥ ८ ॥ एवं वाक्यदोपानभिधाय वाक्यार्थदोपान् प्रतिपादयितुमाहव्यर्थैकार्थसन्दिग्धाप्रयुक्तापक्रमलोकविद्या विरुद्धानि च । २, २, ६ | वाक्यानि दुष्टानीति सम्बन्धः ॥ ६ ॥ [ सूत्र ६-१० क्रमेण व्याख्यातुमाह व्याहतपूर्वोत्तरार्थं व्यर्थम् | २, २, १० | के प्रसङ्ग मे अश्लीलता का निरूपण हुआ है इसलिए ऐसे उदाहरण अधिक उपयुक्त रहते जिनमे वास्तव में सन्धि होने पर अश्लीलता बाई होती । यह जो उदाहरण दिए गए हैं उनमे प्रत्यासत्ति मात्र के कारण अश्लीलता है । इसलिए वह उतने उपयुक्त नही बने हैं । - [ सन्धि होने पर ] कष्टत्व [ दुःश्रवत्व का उदाहरण ] जैसेमञ्जरी के उद्गम से युक्त वे बड़े-बड़े वृक्ष शोभित हुए । इस उदाहरण में मञ्जरी + उद्गम तथा गुरु + ग्राभोग पदों में यणादेश हो कर बने हुए 'मञ्जर्युद्गम' और गुर्वाभोग' पदों मे सन्धि के कारण ऊपर चढ़े हुए रैफ के संयोग से 'कष्टता' या 'दुःश्रवता' श्रा गई है । अतएव यह 'सन्धिकता' के उदाहरण हैं ॥ ८ ॥ इस प्रकार वाक्यदोषों का कथन करके शव वाक्यार्थ दोषो का प्रतिपादन करने के लिए कहते है १ व्यर्थ, २ एकार्थ, ३ सन्दिग्ध, ४ अप्रयुक्त, ५ अपक्रम, ६ लोकविरुद्ध और ७ विद्याविरुद्ध [ सात प्रकार के ] वाक्यार्थ दोष है । [ पूर्वोक्त सात प्रकार के ] वाक्य दुष्ट [ अर्थ वाले ] है यह [ पिछले सूत्र के साथ ] सम्बन्ध है । [ इस प्रकार इस सूत्र में सात प्रकार के वाक्यार्थ दोषों का 'उद्देश' अर्थात् 'नाममात्रेण कथन' किया गया है । आगे उनके लक्षण करेंगे ] ॥ e ॥ क्रम से [ उन वाक्यार्थ दोषों की ] व्याख्या करने के लिए कहते हैश्रागे पीछे के [ पूर्व और उत्तर ] श्रर्थ का जिसमें [ विरोध, व्याघात ] हो वह 'व्यर्थ' [ दोष ] कहलाता है ।
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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