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________________ १०] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती [ सूत्र धातुभागभेद मन्दाक्रान्तायां यथा एतासां रानति सुमनसां, दाम कण्ठावलम्वि । नामभागभढ़े शिखरिण्याम यथा कुरङ्गाक्षीणां गण्डतलफलक स्वेदविसरः । नियम के बिना धातु-भाग अथवा प्रातिपदिक-भाग [ नाम ] का भेद [दुकड़े] कर देने पर होता है। धातु-भाग के विभाग कर देने पर [ यतिभ्रष्ट का उदाहरण ] मन्दाशान्ता [छन्द ] में जैसे इनके गले में पड़ी हुई फूलों की माला शोभित होती है । यह मूल श्लोक 'मन्दाक्रान्ता' छन्द मे लिखा गया है । मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण इस प्रकार है मन्दाक्रान्ता, जलधिपडगे, म्भी नती ताद गुरू चन् । अर्थात् मन्दाक्रान्ता छन्द में प्रत्येक पाद १७ अक्षर का होता है । वह १७ अक्षर भगण, मगण, नगण, तगण-तगण और दो गुम इस प्रकार पूरे होते हैं। इनमे चार, छ: और सात अन्नरों के बाद 'यति' होनी चाहिए । अर्थात् पहली यति चौथे अक्षर के बाद, उमकं छः अक्षरी के बाद अर्थात् टसर्वे अनर के अन्त में दूसरी और उसके सात अक्षर वाद अर्थान सत्रहवे अनर के बाद अन्तिम पनि होनी चाहिए । इम लक्षण के अनुसार पहिली 'यति चार अक्षर के बाद अर्थान् एतासा ग, यहा पर होनी चाहिए । यह 'रा' 'राजति' पढ के मूलभूत 'राज' धातु का एक अंश है । इसके बाद 'यति' कर देने में राज धानु के टुकडे हो जाते हैं। इमलिए धानुभाग के मंद होने से यहा 'यतिभ्रष्ट दोष माना गया है। [नाम ] प्रातिपदिक भाग के भेद [ भङ्ग] होने पर शिखरिणी [छन्द ] में [ यतिभ्रष्ट का उदाहरण ] जैसे मृगनयनियों के [ कपोलफलक ] गाल के ऊपर पसीना बह रहा है । यह शिखरिणी छन्द का एक पाट है। शिखरिणी छन्द का लक्षण इस प्रकार है रमः न्;श्च्छिन्ना, यमनमभला गः शिखरिणी । अर्थात् यगण, मगरण, नगण, सगण, भगण, लघु तथा गुरु इस प्रकार
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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