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________________ सर्व धर्म परिषदना समये तेओश्रीए ज छांवी नजर दोढावी जैनधर्म जेवा शाश्वत दर्शननो ख्याल आपना, पोताना प्रतिनिधि तरीके श्रीयुत वीरचंद राघवजी गांधी बेरीस्टरने मोकलेला. आबा एक प्रखर ज्योतिर्धरना हाथे भावी प्रजाने मार्गदर्शकनी गरज सारे तेवा ग्रंथनी रचना थाय ए कोई जेवो तेवो प्रसंग न गणाय. भाग पहेलाना छ परिच्छेद, अने भाग बीजाना सातथी बार सुधीना परिच्छेद मळी कुल चार प्रकरणमां एटली aat face प्रकारनी वानी पीरसी छे के एनो साद्यंत अभ्यास करनार व्यक्ति सुतरां जैनधर्मनुं हाई अवधारी शके तेम छे. आचार्यश्रीना 'तत्त्वनिर्णयप्रासाद' अने 'अज्ञानतिमिरभास्कर' जेवा ग्रन्थो पण ओछा महत्त्वना नथी. आम छतां जिज्ञासु वर्गने माटे 'जैनतवादर्श 'ना बन्ने भागो खरेखर जैन दर्शनरूपी महामूली मन्जूषाने लगावेला ताळाने उघाडवानी कूंची समान छे. मुंबईनी सभा द्वारा प्रगट थतुं आ पांचमुं संस्करण छे. वडोदरा मुकामे आचार्यश्रीनी जन्म शताब्दि उजवायेली ए वेळा पञ्जाबनी आत्मानंद जैन महासभाए आ ग्रन्थनुं अतिशय सस्तुं संस्करण तैयार करावी लगभग अगीयार सो पानाना बे भाग मात्र आठ आना जेवी नजीवी किंमते प्रचारनो हेतु ध्यानमा राखी छूटथी वेचेला. आ आवृत्ति तैयार करवामां ए सस्ता संस्करणनो न उपयोग करवामां आव्यो छे. आजना युगनी खास अगत्य ज्ञानप्रचारनी छे केमके जैन-जैनेतर जनसमूहमां भगवन्त श्रीमहावीरदेवना तस्वो समजवानी खास
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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