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________________ जैनतवादर्श प्रभृति आचार्यों ने पत्रों के ऊपर एक क्रोड ग्रंथ लिखे, शेष छोड़ दिये । ५. प्रभावकचरित्र में लिखा है, कि सर्व शास्त्रों की जो टीका लिखी थी, वो सर्व विच्छेद हो गई। ६. पीछे से ब्राह्मणों ने तथा बौद्धों ने ग्रन्थों का नाश किया । तथा ७. मुसलमानोंने तो सर्वमतों के शास्त्र मट्टी में मिला दिये । तिन में से जो रह गये, वे भण्डारों में गुप्त रहने से गल गये, तथा जो अब भण्डारों में हैं, वे सव हमने वाचे नहीं हैं । तो फिर इतने उपद्रव जैन शास्त्रों पर वीतने से हम क्योंकर सर्व शंकाओं का समाधान कर सकें। इस वास्ते जैनमत में शंका न करनी चाहिये । हम ने सर्व मतों के शास्त्र देखे हैं, परन्तु जैनमत समान अति उत्तम मत कोई नहीं देखा है । इस वास्ते इस मत में दृढ रहना चाहिये । दूसरा आकांक्षा अतिचार-सो अन्यमत वालों का अज्ञान कष्ट देख कर तथा किसी पाखण्डी के पास आकांक्षा अतिचार किसी विद्या मंत्र का चमत्कार देख कर, तथा पूर्व जन्म के अज्ञान कष्ट के फल करके अन्यमत वालों को सुखी अरु धनवान् देख कर मन में विचारे, कि अन्यमत वालों का धर्म अरु ज्ञान अच्छा है, जिस के प्रभाव से वे धनी अरु पुत्र आदि परिवार वाले होते हैं। इस वास्ते मैं भी इन ही का धर्म करूं, कि जिस करके मैं भी धनी अरु पुत्रादि परिवार वाला हो जाऊं । यह आकांक्षा अतिचार उन जीवों को होता है, कि जिन को
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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