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________________ प्रथम परिच्छेद . ३५ १८. "देवी- देवी इव" ६ देवी की तरे प्रभा है जिसकी सो देवी, १९. " प्रभावती - प्रभास्त्यस्याः " जो प्रभावाली सो प्रभावती, २० "पद्मा - पद्म इव पद्मा" पद्म की तरे पद्मावती, २१. "वप्रा वपति धर्मवीजमिति” - बोती है जो धर्मरूपी वीज को सो वप्रा २२. " शिवा - शिवहेतुत्वात्" - कल्याण का हेतु होने से शिवा, २३. "वामा - मनोज्ञत्वाद्वामा पापकार्येषु प्रातिकूल्याडा वामा" - मनोज्ञ होने से वामा, अथवा पाप कार्यों के प्रतिकूल होने से वामा, २४. “त्रिशला - त्रीणि ज्ञानदर्शनचारित्राणि रालयति प्राप्नोतीति" - तीनज्ञान दर्शन और चारित्र को जो प्राप्त होवे सो त्रिशला । इस क्रम करके ऋषभ आदि चौबीस तीर्थङ्करों की माताओं के नाम हैं । * अव सुगमता के कारण चौवीस तीर्थङ्करों के साथ बावन चोल का जो सम्बन्ध है तिसका स्वरूप यंत्रबंध लिखते हैं । प्रथम बावन बोल का नाम लिखते हैं । wwwwN * तीर्थकरों की माता व पिता के नामों की व्युत्पत्ति प्रभिधानं चिन्तामणि के प्रथम काण्ड में दी हैं ।
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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