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________________ जैनतत्त्वादर्श "गर्भस्थे पूर्वोत्पन्नाशिवशान्तिरभूदिति शान्तिः"-तथा गर्भ में भगवान के उत्पन्न होने से, पूर्व में जो शिव था सो शान्त होगया, इस कारणे शान्ति नाम ।। १७-"कुः पृथ्वी तस्यां स्थितवानिति कुन्थुः"--कु नाम पृथ्वी का है, तिस पृथ्वी में जो स्थित होता भया सो कुन्थु । तथा-"गर्भस्थे भगवति जननी रत्नानां कुन्थुराशि दृष्टवतीति कुन्थुः" भगवन्त के गर्भ में स्थित हुवे माता रत्नमयी कुन्थुओं की राशि देखतो भई, इस हेतु से कुन्थु ।। १८--"*सर्वो नाम महासत्त्वः, कुले य उपजायते। "तस्याभिवृद्धये वृद्धैरसावर उदाहृतः ॥ [अभि० चि०कां० १, स्वोपज्ञ टीका] इति वचनादरः । जो कोई महासत्त्ववान-महापुरुष किसी कुल में उत्पन्न होवे और तिस कुल की वृद्धि के वास्ते होवे तिसको वृद्ध पुरुष प्रधान अर्थात पर कहते हैं। तथा "गर्भस्थे भगवति जनन्या स्वप्ने सर्वरत्नमयोऽरो दृष्ट इत्यरः"भगवन्त के गर्भ में स्थित हुये माता ने स्वप्न में सर्व रत्नमय थर देखा, इस कारण से अर नाम । १८-"परीषहादिमल्लजयान्मलिः"-परीषहादि मल्लों के जीतने से मल्लि । तथा-"गर्भस्थे भगति मातुः सुरभिकुसुममाल्यशयनीयदोहदो देवतया पूरित इति मल्लि":-भगवन्त * आवश्यक भाष्यनियुक्ति की श्री हरिभद्रसूरिकृत टीका (गा० १०८८) मे पूर्वार्ध का पाठ ऐसा है.-सर्वोत्तमे महासत्त्वकुले य उपजायते।
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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