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________________ * ॐ नमः स्याद्वादवादिने न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य श्री विजयानन्द सूरीश्वर ( प्रसिद्ध नाम आत्माराम जी ) विरचित जैनतत्त्वादर्श पूर्वार्द्ध प्रथम परिच्छेद स्यात्कारमुद्रितानेक—सदसद्भाववेदिनम् । भगवन्तमुपास्महे || प्रमाणरूपमव्यक्तं देव, गुरु और धर्म तत्त्व का स्वरूप । तिसका स्वरूप पूर्वाचार्यादिकों विदित हो कि जो यह * जैनमत है, श्री तीर्थकर, गणधर और ने आगम, निर्युक्ति, भाग्य, चूर्णि टीका और प्रकरण तर्कादि अनेक ग्रन्थों द्वारा 2 स्पष्ट | निटंकन किया है । परन्तु पूर्वाचार्यरचित सर्व ग्रन्थ प्राक्कथन * जैन धर्म । + निर्णय | ·
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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