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________________ १५० जैनतत्त्वादर्श जब तक हमारी इन युक्तियों का उत्तर सर्वथा न दिया जावे, तब तक ईश्वर को जगत् का कर्ता नहीं मानना चाहिये। यदि कोई ईश्वर वादी हमारो इन युक्तियों का पूरा उत्तर दे देवेगा, तब तो हम भी ईश्वर को जगत् का फर्ता मान लेवेंगे, अन्यथा कभी नहीं माना जायगा। प्रतिवादी-ईश्वर जगत का कर्त्ता तो सिद्ध नहीं होता, परन्तु एक ईश्वर है यह तो सिद्ध होता है ? सिद्धान्तीः-ईश्वर एक ही है, यह बात सिद्ध करने वाला भी कोई प्रमाण नहीं है। प्रतिवादीः-ईश्वर के एक सिद्ध होने में यह प्रमाण है। जहां बहुते एकठे होकर एक काम को करने एकत्व का लगते हैं, वह अन्य अन्य मति वाले होने से प्रतिवाद एक कार्य भी नहीं कर सकते, ऐसे ही जब ईश्वर अनेक होंगे, तब तो सृष्टि प्रमुख एक ही कार्य के करने में न्यारी न्यारी मति होने से कार्य में *असमंजस उत्पन्न होवेगा। इस वास्ते ईश्वर एकही होना चाहिये। सिद्धान्तीः--इस तुमारे प्रमाण से तो ईश्वर एक नहीं सिद्ध होता, क्योंकि वोह किसी वस्तु का कर्त्ता सिद्ध नहीं हुआ। तथा एक मधुछत्ते के बनाने में सर्व मक्षिकाओं का तो एक मिता हो जाता है, परन्तु निर्विकार, निरुपाधिक, ज्योतिःस्वरूप ईश्वरों का एक मता नहीं हो सकता, यह बडे आश्चर्य * अव्यवस्था | मति, विचार । AnnanoramaAAAmastarm
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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