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________________ जैनतत्त्वादर्श - सिद्धान्तीः-ऐसे तो कोई भी वादी कह सकता है कि यह जो हमारे सन्मुख गधा खड़ा है, सो सर्व जंगत का रचने वाला है । जेकर कोई वादी पूछे कि किस हेतु से यह गर्दभ जगत् का रचने वाला है ? तब तिस को भी ऐसा ही उत्तर दिया जायगा कि इस गर्दभ का स्वभाव ही ऐसा है, कि जगत को रच के, राग द्वेष वाला सर्वज्ञ हो कर, फिर गर्दभ ही बन जाता है । इसी तरे महिष प्रादिक सर्व जीव जगत के कर्त्ता सिद्ध किये जा सकते हैं । ईश्वर क्या हुआ भानमती का एक तमाशा हुआ। जो कुछ अपने मन में पाया लो बना लिया । यह तो ईश्वर को बड़ा भारी कलंक लगाना है । इस वास्ते ईश्वर जो है सो सर्वज्ञ और वीतराग है । वो क्रीडा के निमित्त इस जगत् को रचने वाला नहीं है । तथा हे ईश्वरवादी! तेरे कहने के अनुसार जब ईश्वर ने ही सब कुछ रचा है, तब तो तीन सौ त्रेसठ पाखण्डमत के सर्व शास्त्र भी ईश्वर ही ने रचे होंगे। अरु ये सर्व शास्त्र आपस में विरुद्ध हैं । तब तो अवश्य कितनेक शास्त्र सत्य अरु कितनेक असत्य होंगे। तो फिर झूठ अरु सत्य दोनों का उपदेशक भी ईश्वर ही ठहरा। अरु सर्व मत वालों को आपस में लड़ाने वाला भी उसी को मानना चाहिये । हजारों लाखों मनुष्य इन मतों के झगड़ों में मर जाते हैं । ईश्वर ने शास्त्र क्या रचे- ?- जगत् में एक बड़ा भारी उपद्रव मचा दिया। ऐसे झूठे-सच्चे
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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