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________________ (( ७४) (E) नपुंसकवेद-स्त्री और पुरुष दोनों के समागम __ की इच्छा करना * व हस्त दोप, शिशु-मैथुनादि करना। हास्य अरति रति शोक भय, और जुगुप्सा वेद । योतो पाप सभी मगर, वेद नरक का मेद ॥ - - पाठ ४५-कौनसा कषाय चोक किसको होवे । (१) धन मोगादि को ही अपनी वस्तु माने उसे अनन्तानु बन्धी मिथ्यात्व । (२) धन भोगादि को झूठे जानता हुश्रा त्याग न कर सके उसको अप्रत्याख्यानी समदृष्टि । . __(३) धन भोगादि का बहुत त्यागकर अन्प भी पश्चाताप युक्त रखे वह प्रत्याख्यांनी (श्रावक) (४) धन भोगादि सर्वथा छोड़े, जिसको केवल धर्म राग हो वह संज्वलन कषायी (साधु) __ (५) सर्वथा राग द्वेष कषाय का नाश किया हो वे अकषायी अर्थात् अरिहंतदेव । * शिवकवर्ग इससे होने वाले शारीरिक, मानसिक तथा धार्मिक । सभी भयंकर हानियों को निःसंकोच छात्रों को समझावे, यदि बन सके - 'विद्यार्थी व युवकों से' इसी कायांलय की पुस्तक पढ़कर सुनावें ।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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