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________________ ( ७२ ) (४) सम्यक् तप-निर्वाचिक बनना अर्थात् इच्छाओं का रोकना तप है। जिन क्रियाओं के करने से इच्छाएँ रुकती हैं उन्हें भी तप कहते हैं। सम्यग्दर्शन ज्ञान तप, और विमल चारित्र । करते कर्म विनाश हैं, होता जीव पवित्र ॥ पाठ ४२-प्रमाद पाँच (१) मद-जाति, कुल, बल; रूप, तप, शास्त्र, लाभ और ऐश्वर्य का गर्व करना। (२) विषय-पांच इन्द्रियों के २३ विषयों में लीन होना। (३) कषाय-क्रोध, मान, माया और लोभ करना । (४) निद्रा-नींद । (५) विकथा-पाप की बातें करना या फजूल बातें करना। दुर्लभ मानव तन मिला, करो न कमी प्रमाद । जीवन यदि योंही गया, होगा परम विषाद ॥ पाठ ४३–कषाय सोलह ४ अनन्तानुषन्धी-क्रोध, मान, माया और लोम • अधिक मरण तक रहे।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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