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________________ ( ५७ ) सच सच कहदी जिससे राजा उस पर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे जितना चाहे उतना धन माँग लेने को कहा। फपिल बड़ा चतुर था । वह वगीचे में गया और विचारने लगा कि अधिक से अधिक क्या प्राप्त करना चाहिये ! सौ, फिर हजार, फिर लाख, फिर करोड़ सोना मोहरें माँगने का विचार किया और अाकांक्षा का अन्त न श्रात देखकर उसकी ज्ञानी अात्मा ने अन्त में विचारा'अरे इस लोभ का तो कोई पार ही नहीं । हाय ? लोम बड़ी चुरी चीज है ! । ऐसा विचारते विचारते उसे जाति-स्मरण शान हुया जिससे उसने दीक्षा ले ली । मुनि कपिल ने उन तपश्चर्या दी जिससे उन्हें केवल ज्ञान हुआ। श्राप एक रामय राज-गृहि नगरी की तरफ जा रहे थे । रार में १८ योजन का एक भयंकर जंगल आया । उसमें ५०० चोर रहते थे। उन्होंने थापको पकड़ लिया मौर रापको गाना सुनाने के लिए कहा । तर अापने अपनी सार बीती व उपदेश सुनाया जिससे उन चोरों को भी ईरान्य उत्पन्न हो गया और उन्होंने भी दीक्षा लेफर भात्म कल्याण किया । प्यारे वीर बालको ! लोम करना बहुत बुरा है । नद पापों का पाप लोभ ही है । लोम ही के वश मब पाप
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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