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________________ ( ४६ ) ( २ ) जैनाचार्य कृतकृत्य हो गये हैं । ( ३ ) अहिंसा का आदेश जैनधर्म का गौरव है उपाश्रयों में से जगत् चौक में आओ, सारे जगत् को उपाश्रय बनाओ, प्रान्त के नहीं देश के नहीं जगत् वर के धर्माचार्य बनो । ( ४ ) हिंसा से परिपूर्ण यूरोप, रिका, अफ्रिका, और एशिया का बड़ा भाग क्या तुम्हारी राह नहीं देख रहा है? कि जैनधर्म आप और "हिंसा परमोधर्षः " का पाठ सिखाकर अहिंसक बनावे | ५ जैन संघ नगत् का है मात्र गुजरात का नहीं मात्र भारतवर्ष का नहीं । श्रीमान् कविवर श्री० पं० रामचरितजी उपाध्याय गाज़ीपुर | ( १ ) जैनधर्म अत्यन्त प्राचीन धर्म है । ( २ ) जैनधर्म के अवतार श्री ऋषभदेव आदि प्रति प्राचीन समय में हो चुके है । ( ३ ) जैन - श्रहिंसा दयामय होती हुई निःस्वार्थ की उज्वल प्रतिमा है । वह स्वच्छ व है | और सर्व
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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