SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२९ ) वीर-समोसरण । प्रभु महावीर के गादीधर और उनके उपासक इस समय श्री वीर प्रभु के समवसरण को आदर्श समझ अपने हृदय और दृष्टि के समक्ष वह दृश्य उपस्थित कर चलें तो कितना अच्छा हो ? वीर भगवान के समवसरण की विचित्रता तो देखिये! सांप और बिल्ली के शरीर को चूहे के बच्चे अपनी माता का शरीर समझकर आनंद से नृत्य कर रहे हैं. और कूद रहे हैं. गाय का बच्चा सिंहनी को माता मानकर उसका दूध परिहा है और उसके सामने प्रसन्न हो रहा है और सिंहनी उसे अपनी जीभ से चाटकर अपना प्रेम दिखा रही है. वीर के समवसरण में आने वाले हिंसक, क्रूर, भयंकर, पापी, प्राणियों में इतना परिवर्तन हो जाता है तो समवसरण के पूज्य साधु और श्रावकों के जीवन कितने पवित्र और परस्पर कितना प्रेम होगा? वीर समवसरण में सिंह बाघ, और सर्प आदि भयंकर प्राणी भी वीर से समतावान दृष्टि गत होते हैं। वीर का समवसरण जंगली प्राणियों के अंतःकरण से अनादि जात-बैर, द्वेष, जहर, इर्षा, शत्रुता और अभिमान को हटा देता है. वीर का समरसरण अनन्त काल का क्रोधी स्वभाव भुलाकर हिंसक प्राणी को भी परम क्षमा शील बना देता है । वीर के समवसरण से सर्वत्र निर्भयता और अभय के भाव फैलते हैं गाय सिंह के समीप,
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy