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________________ (९१) वचनामृत शतक (१) निर्बल का शस्त्र विषय व कषाय है. (२) बलवान का शस्त्र संयम व समभाव है। (३) विचार वायु मात्र है, व्यवहार चैतन्य है। (४) शरीर की सिरजोरी का मद स्वर्ग, नरक, पुन्य, पाप बंध और मोक्ष को आडम्बर समझता है । : (५) आत्मवादी तीन लोक की विभूति का स्वामी है। (६) शरीर वादी शरीर के मद में अंधा बनकर आत्म तत्व और धर्म क्रिया को भूल जाता है। (७) आत्मवादी आत्मा की मस्ती में मस्त होकर इन्द्र व चक्रवर्ती के भोग को भी रोग समझता है। (८) शरीर के मद से आत्म मद अनंत शक्ति शाली है। (९) शरीर मदांध धर्म तत्व को भूल जाते हैं तो आत्म मदांध शारीरिक सुख को दुःख क्यों न समझें? (१०) कर्म इतने प्रबल हैं तो आत्मा कितना प्रबल और शक्ति शाली होगा ? इसका विचार कीजियेगा। , (११) ज्ञान रहित जीवन जड़ के समान है। (१२) ज्ञानी सागर के सदृश गंभीर होते हैं। (१३) निद्राधीन शरीर से बेभान हो जाता है तो ज्ञानी क्यों न आत्म रमन मे बेभान हों ? (शरीर से) ,
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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