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________________ ( ३६ ) परिग्रह और दानं पांचवा व्रत परिग्रह संतोष का है. यूरोप वाले विवाह शादी में २५, ५० या १०० रुपये खर्च करते हैं परन्तु उन लग्नादि शुभ प्रसंगों की स्मृति में लाखों रुपये दान में देते हैं. वहां वाला हरएक लग्न के शुभ अवसर पर करोड़ों रुपये संस्थाओं को दान में देते हैं. वे लोग भारवर्ष में अपने धर्म के प्रचार के लिये प्रतिवर्ष ७२ करोड रुपये खर्च करते हैं परन्तु भारतवर्ष में विवाह, शादी, वैश्यानृत्य, आतिशबाजी. नुकते आदि व्यर्थ खर्चों में ७२ करोड से भी ज्यादे रकम व्यय कर देते हैं. और विद्या प्रचार में उतनी कोडियां भी खर्च नहीं करते हैं. जैनसमाज में ऐसी एक भी प्रमाणिक संस्था दिखाई नहीं देती और जो संस्थाऍ फ़िलहाल चल रही हैं उनमे से ज्यादेतर, अशिक्षित श्रीमंतों की बुद्धि व विचारों के अनु सार चलती हैं. अशिक्षा के कारण जैनसमाज दिन व दिन गिरती जा रही है अन्य धर्मावलंबी अपने धर्म की तन मन धन से उन्नति कर रहे हैं. यूरोप वाले हवाई जहाज के वेग से, बौद्ध रेलवे के वेग से, मुसलमान मोटर के वेग से, और वैदिक घोडा गाडी के वेग से, अपने २ धर्म का प्रचार कर रहे हैं परन्तु जैनी दिन व दिन घटते चले जा रहे हैं. प्रति दिन २२ बाविस जैनी घटते हैं इस प्रमाण से १५० 2 4 में जैन समाज का अस्तित्र भी रहेगा या नहीं यह विचार
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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