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________________ ( २३ ) ये जीव जैसे रातको अपने शरीर पर बैठते हैं वैसे भोजन पर भी । अब उस भोजन पर बैठे हुए जीवों में से कितने जीव, रात्रि भोजन करने वालों के पेट में जाते होंगे, इसका विचारना कठिन नहीं । इस प्रकार के जीते जीवों के भदण करने वाले निर्दयी हैं, ऐमा किसी अपेक्षा से कहा जाय तो अनुचित न होगा । यह तो जीवों के भक्षण के विषय में बात हुई। परन्तु बहुत से रात्रि भोजन करने वाले रात्रि भोजन से अपने प्राणों को भी खो बैठते हैं । ऐसे अनेकों प्रसंग धोलेरा, खंभात और कलकत्ता वगैरह शहरों में बने हुए सुनने और देखने में भी आये हैं। ऐसे ही प्रसंग वर्तमान पत्रों में भी बहुत बार पढ़ने में आते हैं । इन्हीं कारणों से शास्त्रकारों ने रात्रि भोजन में जोर देकर पाप दिखलाया है । यहां तक कि, यद्यपि साधुओं के लिये पांच महावत दिखलाए गए हैं, परन्तु जिस समय साधु दीक्षित होता है उस समय पांच महाव्रतों के साथ रात्रि भोजन को छा व्रत गिनकर के उसका भी उच्चारण कराया जाता है। कहीं २ तो यहां तक कथन पाया जाता है कि-'रात्रि भोजन में इतने दोष हैं, जिनको केवली जान सकते हैं परन्तु कह नहीं सकते। इस पर अगर सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाय, तो यह सत्य ही मालूम
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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