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________________ आवश्यकता से अधिक धन कमाने की चेष्टा करते हैं वे अधिक पापी बनते जाते हैं। खूनी, चोर, मृषावादी तथा व्यभिचारी का प्रात:काल में न तो कोई नाम लेता है और न मुंह ही देखता है । तो धनको केवल विषय विलास तथा शौक में खचकर पांचवे परिग्रह के पाप की वृद्धि करने वाले के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिये ? उसे कैसा मानना चाहिये ? इसका पाठक स्वयं ही विचार करें। खूनी का पहिला, मृषावादी का दूसरा, चोरका तीसरा, व्याभिचारी का चौथा और महा परिग्रही का पांचवाँ नंबर है । प्रभुने नरक में जाने के चार कारण बतलाये हैं। उनमें परिग्रह का ममत्व रखना यह नरक के बंधद्वार को खुला करने के समान बतलाया है। राजकीय नियमों का भंग करने वाला अपराधी है। अपराधी के लिये चार प्रकार की सजा की व्यवस्था है; सादी कैद, सख्त मजूरी की सजा, देश निकाला और फांसी । लोकोत्तर शासन में भी क्रमशः स्वर्ग, मनुष्य, तिर्यंच और नरक रूपी चार प्रकार की सजाओं की व्यवस्था है। ____ यहां के शासनकर्ताओं ने अपने जीवन के अनुभवों के अनुसार अपराध और सजाएं कायम की हैं। _ मनुष्य धर्भ को श्रेष्ठ बतलाता है किन्तु उसका वर्तन उसके विपरीत देखने में आता है । बहुत से मनुष्यों
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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