SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरा भाग ४५ (१६) गर्भ बाहिर आने के बाद बालक को दूध न पाने वाली माँ पापिन कि शिक्षा न देने वाली ? ( १७ ) नीति का धन दूध के समान और अनीति का धन खून के समान है । (१८) दया देवी का दर्शन धर्म स्थान मे नहीं किन्तु कसाई खाने में होते हैं । कारण वहाँ कठोर हृदय भी अनुकंपा से पिगल जाता है १९ ) किसान खेती के पहिले बीज की जांच करता है । क्या आपने कभी व्याह के समय संतान की तंदुरस्ती का विचार किया है ? (२०) एक अशिक्षीत स्त्री देश का नाश करती है और शिक्षित खी देश का उद्धार कर सकती है । (२१) सौ मनुष्य की पैदाइश लूटने वाला एक राक्षस या अन्य कोई ? ( २२ ) सौ मनुष्य जितना भोजन खर्च करने वाला एक राक्षस या अन्य कोई ? ( २३ ) जो रस्सी प्रांत की बनी हुई है उसको क्या आप कंदोरा रूप से पहिन सकते हो ? ( २४ ) जिस वस्त्र के बनने मे पंचेद्रिय जीवों की चरवी लगती है, उसको क्या आप पहन सकते हो ? (२५) नुगता धनवान को निर्धन और निर्धन को भिखारी, ( मंगता ) बनाता है | { (२६) शास्त्र - श्रवण - क्रिया गर्भ धारण समान है जिसे शुद्ध मन से करनी चाहिये। उसका पालन प्रसव-तुल्य है। कुज्ञान
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy