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________________ श्रीआत्म-बोध १५-हजारो वनस्पतियो से बनी हुई औपवि में अधिक पाप या शराब, अण्डे, चरवी, वाली एक बूद या गोली मे ? १६--फलाहार में ज्यादा पाप या मिठाई मे ? १७-लिलोती मे ज्यादा पाप या कस्तूरी मे ? १८-पुष्प मे ज्यादा पाप या इन में ? १९--लाख मन गेहू के आटे मे ज्यादा पाप या परदेशी पाव भर मैदे मे ? २०-तिल्ली के तेल मे ज्यादा पाप या मिट्टी के तेल मे ? २१-हाथ के बुने हुवे सैकड़ो थान मे ज्यादा पाप या चरवो वाले एक तार मे ? २२--सूत के लाख चंवर मे ज्यादा पाप या चवरी गाय के एक चंवर मे ज्यादा पाप ? २३---सौ मन गुड का ज्यादा पाप या पाव भर परदेशी शक्कर मे ? २४-घर पर हजारो मन पिसाने में ज्यादा पाप या मील की चक्की ( Flour omills) मे एक कण पिसाने मे ? २५-घर मे कुँआ रखने में ज्यादा पाप या एक नल रखने में ? २६ हजारों बार गोबर से लिपन करने में ज्यादा पाप या एक बार फर्श जड़ाने मे ? २७---गौ पालन करके नित्य दूध पीने में ज्यादा पाप या सारी जिन्दगी में एक दफा एक चाय का प्याला पीने मे ? २८-मण भर पोनी पीने से ज्यादा पाप या सोडावाटर एक शीशी पीने में ?
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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