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________________ ६ श्रीआत्म-बोध साथ ही पानी जैसा नरम | वायु अग्नि जैसा उ साथ ही बर्फ जैसा शीतल । जैसा स्फुरायमान साथ ही वृक्ष जैसा स्थिर । सिंह जैसा निडर साथ ही हिरन जैसा डरपोक । सूर्य जैसा प्रखर और चंद्र जैसा शीतल । दो महावीर भरत- बाहुबल मेरी आज्ञा मान | प्रभु आज्ञा के सिवाय सर्वथा सदा स्वतंत्र | मैं नरेन्द्र हूँ । तू नर जड़ पिण्ड का तो मैं चैतन्य अहमेन्द्र हूँ । देख मेरे आधिपत्य की सत्ता । चक्र रत्न बिजली के पंखे के समान हवा करता है । गर्विष्ठ पुतला, देख मेरी मुट्ठी । अरे यह किस पर ? हैं, क्या परिणाम होगा ? अर्थ | मुट्ठी पीछी कैसे फिरे ? क्षमा अमृत से विष का नाश । मान विष का इस मुट्ठी से नाश करूँ । लोच किया । आकाश में देव दुंदुभी । जयनाद ।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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