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________________ [४७] अर्थ उत्तम वाक्य है । पंच परमेष्ठी प्रभु को रोज स्मरण करके उनके समान अनंत ज्ञानादि गुण __ अपने में भी प्रकट करने का चिंतवन करना चाहिए। इसे भावना कहते हैं। सठते समय, सोते समय, और हरएक कार्य __ करते समय, नवकार मंत्र का अर्थ और भावना सहित चितवन करना चाहिये। हम जैन हैं, इसलिये हम को हमेशा, मंगबाचरण __ में नवकार गिनकर रोज थोड़ा-सा समय जैन तत्व ज्ञान की पुस्तक पढ़ने और विचारने में लगाना चाहिए। जैसे शरीर का आधार भोजन है, इसी प्रकार जीव का आधार ज्ञान है। हम लोग जैसे रोज़ भोजन करते हैं, वैसे कुछ समय तक, रोज़ ज्ञान ध्यान का नियम भी रखना चाहिये। ३२-चौबीस तीर्थंकरों के नाम १-श्री ऋषभदेव-स्वामी २-श्री अजितनाथ-खामी ३-श्री संभवनाथ-खामी
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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