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________________ [ ४० ] नहीं जीता तब तक आपका 'महावीर' अर्थात् "बड़ा शूरवीर" नाम रखना ठीक नहीं । यदि आप मुझ से युद्ध करके जीतें तो आपको सच्चा महावीर मानूँ । सारे बालक महावीर के पराक्रम को जानते थे । वे बोले - "आप शीघ्र ही इसका गर्व उतारिये ।" महावीर बोले- भाई अपना युद्ध प्रेम का होता है, द्वेष का नहीं । राक्षस - मैं भी परीक्षा ही के लिए युद्ध करना चाहता हूँ, न कि द्वेषवश । दोनों में युद्ध शुरु हुआ । महावीर ने राक्षस को तत्काल ही नीचे गिरा दिया। वे उसके ऊपर बैठ गए, नीचे गिरते ही उसने राक्षसी शक्ति से बढ़ना शुरू किया । वह एक दम पहाड़ जितना ऊँचा हो गया । सब लड़के भयभीत होने लगे, परन्तु महावीर तो उसके ऊपर निडर होकर डटे रहे । जब उन्होंने देखा कि लड़के बहुत घबरा रहे हैं, तो अपनी एक अँगुली से उसे दबाया । वह हवा से फूले हुए कपड़े की तरह नीचे दब गया । महावीर के बल, क्षमा, निभयता व शूरवीरता की सब ने प्रशंसा की।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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