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________________ [३५] पाप! यह शब्द सुन कर मोहन को अचरज हुआ। उसने कहा-पिताजी, इसमें पाप किस बात का ? हाँ, कीमत तो ज्यादा लगती है। पिताजी ने कहा-बेटा, कीमत की बात नहीं है। तुम्हें मालूम है यह कैसे बनता है ? ___ मोहन-यह तो मालूम नहीं । कपास की तरह रेशम भी उगता होगा और उससे कपड़ा बनता होगा। पिताजो-अरे, तुझे यह भी मालूम नहीं । रेशम कीड़ों के मुँह की ताँत है। लाखों कीड़ों को मारने से यह तैयार होता है। इससे बड़ा पाप होता है ? - मोहन-तो पिताजी, ऐसा कपड़ा कौनसा है जिसमें पाप न हो। पिताजी-खद्दर का। इसमें चर्वी भी नहीं लगती है। मिल के कपड़ो में भी चर्बी का कलफ़ लगता है। इसके लिए लाखों गाय-भैंस आदि जानवर मारे जाते हैं । इसलिये खादी के कपड़े काम में लाना चाहिये। ___ मोहन-पिताजी ! मैं आज से सदा पवित्र कपड़े ही पहनूंगा । मैंने अज्ञानता से रेशमी कोट माँगा। माफ करें।
SR No.010061
Book TitleJain Shiksha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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