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________________ सरल सत्यता, न्याय नीति थी उनके मन में, सादाई को ग्रहण किया था निज जीवन में, हुए नही गर्विष्ठ क्षणिक वैभव को पाकर, सेवाये की यथा समय घर-घर भी जाकर, हो निरीह निज देश की, सेवा वे करते रहे, देकर के निज द्रव्य भी, पर दुख वे हरते रहे ॥३॥ सुन निन्दा वे नहीं डिगे थे अपने प्रण से, था सुधार से प्रेम नही नश्वर जीवन से, परिषद् के थे प्राण, कर्म के थे उत्साही, करके कर्मवीर है वही न जो बाधा से डरता, बढता रहे सदैव नही पग पीछे वरता, मिली सफलता उन्हें हाथ जिसमे भी डाला, पाला निज कर्तव्य, कभी भी उमे न टाला, जाति सुधारक सर्वदा, लाला तनसुखराय थे, दीन-हीन जन के लिए, सच्चे प्रवल सहाय थे || ५ || X बिरले महापुरुष ६४ ] पर उपकार प्रशसा कभी न चाही, देख धर्म के ह्रास को, दुखित था उनका हिया, सत्य धर्म रक्षार्थ ही, सब कुछ था उनने किया ||४|| X X X लालाजी जैन समाज के महान् सुधारक थे। उनके मन मे सदैव देश और समाज-सेवा की भावना जागृत रहती थी। हमारे पिता वैरिस्टर जमनाप्रसादजी उनकी सदैव प्रशसा किया करते थे। ऐसे महापुरुष ससार मे बिरले ही होते है । मैं उनके प्रति श्रद्धाजलि अर्पण करता हू । X X श्री नरेन्द्र (कैप्टेन ) सुपुत्र श्री जमनाप्रसादजी वैरिस्टर, नागपुर X X
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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