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________________ दो शब्द : प्रसिद्ध देशभक्त कर्मवीर कुशल व्यवसायी समाजसेवी ला० तनसुखराय जैन स्मृति ग्रन्थ देश और समाज सेवा का सुन्दर समन्वय भारतभूमि रत्नगर्भा है । समय-समय पर कुछ ऐसी दिव्य विभूतियाँ जन्म लेती है जो अपने कार्य और प्रभाव से एक नया चमत्कार पैदा कर देती है । नवभारत के निर्माण मे लोकमान्य तिलक, विश्व कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर, विश्वबन्धु महात्मा गाधी, पजावकेसरी ला० लाजपतराय और विश्व शान्ति के अग्रदूत प० जवाहरलाल नेहरू जैसे अद्वितीय महान रत्न हुए जिन्होने लोक कल्याण की भावना से जन साधारण मे असाधारण क्रान्ति की भावना उत्पन्न की। अपनी प्रभावशाली वाणी और प्राश्चर्यजनक कार्यों से देशवासियों के हृदय मे ऐसी जागृति की ज्वाला जगाई कि उन असख्य युवको और वीराङ्गनाओ ने सहर्प मातृभूमि के चरणो मे अपने को न्योछावर कर दिया । राष्ट्रीय आन्दोलन मे जैन समाज भी कभी पीछे नही रहा उसके शक्तिशाली युवको ने स्वतन्त्रता की प्राप्ति के लिए एक-दूसरे से आगे बढकर अपना तन-मन-धन अर्पण करने मे अपना गौरव समझा । परतत्रता रूपी अन्धकार को दूर करने और स्वतन्त्रता रूपी लाली भरे भास्कर का स्वागत करने के लिए तेजस्वी युवक आगे आए। उन्ही युवको से देशभक्त कर्मवीर समाजसेवी ला० तनसुखरायजी थे, जो देश सेवा को अपने जीवन का लक्ष्य समझते थे । उन्होने भ० महावीर के मंगलमय शासन को लोकव्यापी बनाने के लिए प्रयत्न किया । वे मानवता की सेवा के लिए सदैव लालायित रहते थे । जैन समाज एकता के सूत्र मे बंघकर अहिंसा धर्म का अधिक से अधिक प्रचार करता रहे। यह पुनीत भावना उनके हृदय में सदैव बनी रहती थी । शाकाहार का प्रचार हो, पशुधन की रक्षा हो इस सम्बन्ध में उन्होने वडा महत्वपूर्ण कार्य किया । देश समाज के प्रति की गई उनकी सेवाएं स्वर्णाक्षरो मे लिखने योग्य है। उनका जीवन युवको के लिए आदर्श है | आज जब भ्रष्टाचार और लोलुपता का बोलबाला दिखाई दे रहा है तब हम उनके जीवन को देखते हैं कि उन्होने पदो की कभी अभिलापा नही की । स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् राजनीति को छोड़कर वे समाजसेवा के क्षेत्र मे आए ।
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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