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________________ प्रेरणा के स्रोत डा. ताराचन्द जैन (बख्शी) M.Sc., LL.B, N.D.D.Y. जयपुर लाला तनसुखरायजी निश्चय ही उन महान् विभूतियो मे से थे, जिन्होने विना स्वार्थ के अपने पापको देश तथा समाज-सेवा के कार्य मे मिला दिया, घोल दिया। एकमात्र कर्तव्य को ही उन्होने अपना धर्म समझा। राष्ट्रीय-आन्दोलन में उन्होने अपना पूरा सहयोग दिया और देश की खातिर वे जेल भी गये । लेकिन उनमे पद की लोलुपता नहीं थी। यदि वे चाहते तो मिनिस्टर भी बन सकते थे, लेकिन देश के स्वतत्र होने के बाद उन्होने अपने आपको समाज-सेवा के ठोस कार्य में लगा दिया। उन्होने सैकडो सेवाभावी कार्यकर्ता पैदा किये-वे प्रेरणा के स्रोत थे। उनके सम्पर्क में जो भी व्यक्ति एक बार आ जाता था वह सदा के लिए उनका हो जाता था। उनका जीवन युवको के लिये आदर्श है। लालाजी से मेरा परिचय सन् १९५२ मे हुआ, जवकि वे एक सस्था का उद्घाटन करने आये से उसके बाद से वे जब भी जयपुर में पधारते थे हमारे यहा ही ठहरते थे। और मै भी कई वार दिल्ली गया, तब उनसे अवश्य मिलकर माता था। उनके दर्शनो से ही गजब की प्रेरणा मिलती थी। उनकी प्रकृति व भाकृति बहुत सौम्य थी। __समाज-सेवा के कार्यों में उनकी बेहद लगन थी। समाज का ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसमें उन्होने अपना सहयोग नहीं दिया हो । उनके कार्यो, त्याग और उदारता को देखकर सब लोग उनकी भूरि-भूरि प्रशसा किया करते थे। वे देश, समाज के उन कर्मठ, अनुभवी और कर्तव्य-परायण कार्य-कर्ताओ मे से थे, जिनका जीवन अनुकरणीय है । आज उनकी सेवामो की देश व समाज को अत्यन्त आवश्यकता थी। ऐसे असमय मे वे हमारे बीच से उठ गये, अभी उनकी आयु भी अधिक नहीं थी। किन्तु ऐसे योग्य व त्यागी महान् पुरुषो की परलोक मे भी आवश्यकता रहती है । मै दिवगत आत्मा के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धाजलि अर्पित करता है। [6
SR No.010058
Book TitleTansukhrai Jain Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJainendrakumar, Others
PublisherTansukhrai Smrutigranth Samiti Dellhi
Publication Year
Total Pages489
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size16 MB
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